उरई। चर्चित बीएसएनएल फ्रेंचाइजी धर्मेंद्र सक्सेना के अधिवक्ता हरिओम मिश्रा ने बुधवार को उन्हें साजिश का शिकार बताते हुए विज्ञप्ति जारी की है। उन्होंने कहा कि इसमें सिविल लाइबिलिटी के मामले को क्रिमिनल केस के रूप में प्रस्तुत करते हुए धर्मेंद्र सक्सेना और उनकी पत्नी के खिलाफ बड़ा षणयंत्र किया गया है।
हरिओम मिश्रा ने कहा कि फ्रेंचाइज बीएसएनएल को वर्क फोर्स देना है न ही आधार कार्ड बनाने का। उन्होंने कहा कि आधार अपलोड करने का काम ऑपरेटर का होता है जो यूआईडीएआई की परीक्षा पास करके आता है और उसके क्रेडेन्सियल बनते हैं। जिसका एक्सेस केवल उसके पास रहता है। ऑपरेटर केवल बच्चों के आधार बना सकता है जिसमें माता-पिता के फिंगर प्रिंट लगते हैं और अपडेट करने के लिए किसी बड़े अधिकारी के हस्ताक्षर फार्म पर अनिवार्य रहते हैं। अगर किसी भी तरह की कमी ऑपरेटर की पायी जाती है तो यूआईडीएआई ऑपरेटर पर पेनाल्टी लगती है और उसके पांच साल के लिए ब्लैक लिस्टिड कर दिया जाता है। उस पर एफआईआर नही होती।
उन्होंने बताया कि फर्म मालिक की सिविल लाइविलिटी भी सीमित होती है। जिसमें उसको ओसीएससी किराया व आधार फी जमा करनी होती है। उन्होंने बताया कि अंडमान निकोबार पुलिस की सीआईडी ब्रांच में इसकी जांच चल रही है। अभी तक न तो धर्मेंद्र सक्सेना के खिलाफ कोई चार्जशीट भेजी गयी है और न ही कोई आरोप सिद्ध हुआ है। उन्हें बदनाम करने के लिए इस तरह की खबरे फैलाई जा रहीं हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि धर्मेंद्र सक्सेना स्वयं अंडमान में जांच में सहयोग के लिए पुलिस के पास गये थे न कि उन्हें गिरफ्तार किया गया है। उनका दावा है कि केवल समाचार पत्रों के ट्रायल के आधार पर धर्मेंद्र को फंसाया जा रहा है। इसी तरह छौंक वाले में भी न तो धर्मेंद्र सक्सेना संलिप्त हैं और न ही उनका इस मामले से कोई लेना-देना है। कुछ व्यवसाय प्रतिद्वंदी उन्हें फंसा रहे हैं। जिसमें दूध का दूध और पानी का पानी जांच के बाद साफ हो जायेगा।







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