
उत्तर प्रदेश में सत्ता पक्ष एक नई गोट खेलने की तैयारी कर रही है जिसके आभास से सभी खेमों में हलचल बढ़ गयी है। यूपी में सत्ता पक्ष ने जिस दांव को सोच रखा है वह पिछड़ों के आरक्षण में बटवारे का पासा है। प्रदेश के पंचायती राज मंत्री ओमप्रकाश राजभर के कंधे पर योगी ने इसकी बंदूक रखी है जो सन्निकट पंचायत चुनावों में रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू करने की खुली पैरोकारी कर रहे हैं। इस मुददे पर लामबंदी के लिए उन्होंने पिछड़ों की हिमायत का दावा करने वाली पार्टियों से संवाद शुरू कर दिया है जिसका श्रीगणेश अपना दल से किया है। अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल को इस संदर्भ में पत्र भेजकर उन्होंने पूंछा है कि उनके इस कदम के बारे में वे क्या राय रखती हैं। उन्होंने बताया कि वे संजय निषाद व समानधर्मी अन्य सहयोगी दलों के साथ-साथ सामाजिक न्यायवादी प्रतिपक्षी दलों के नेताओं को भी ऐसी चिटठी भेजने वाले हैं। अनुप्रिया पटेल से इसकी शुरूआत का मन्तव्य स्पष्ट है। अनुप्रिया पटेल आरक्षण के बारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रीति-नीति पर अक्सर सवाल उठाकर उन्हें असहज करती रहती हैं। लेकिन ओमप्रकाश राजभर की चिटठी पढ़ने के बाद अब असहज होने की बारी खुद उनकी है।

रोहिणी आयोग की सिफारिशें बनी हथियार
रोहिणी आयोग का गठन मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर 2017 को पिछड़ा आरक्षण के समान वितरण के लिए सिफारिशें सुझाने हेतु किया था। 31 जुलाई 2023 को आयोग ने यह रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज दी लेकिन सरकार ने अभी तक इस रिपोर्ट को लागू करने, न करने के बारे में अपना निश्चय प्रतिपादित नही किया है। ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण को न्याय संगत बनाने के लिए रोहिणी आयोग की सिफारिश के अनुसार इसके तीन हिस्से करने का इरादा बनाया गया है। यादव, कुर्मी, लोध, गुर्जर जैसी सशक्त पिछड़ी जातियों के लिए इसमें मात्र 7 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया जायेगा। इसके बाद अत्यन्त पिछड़ी जातियों में वर्गीकृत श्रेणी के लिए 9 प्रतिशत और सर्वाधिक पिछड़ी जातियों के लिए 11 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था होगी। यादव सपा के कोर वोटर हैं इसलिए उनका आरक्षण घटने से तो भाजपा को कोई हर्ज नही है लेकिन साथ में कुर्मी आदि का इस फार्मूले से भड़कना उसे भारी पड़ सकता है। फिलहाल तो यह प्रस्ताव अनुप्रिया पटेल को परेशान करने वाला है। इसलिए यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि राजभर ने पहली चिटठी अनुप्रिया बहनजी को क्यों लिखी।

कितना उजला है योगी सरकार का न्याय प्रिय चेहरा
वैसे भी योगी सरकार को बहुत न्याय प्रिय नही कहा जा सकता। अगर होती तो तमाम नौकरियों में आरक्षण की चोरी न करती। सो न्याय भावना की आड़ में दूसरों के साथ अत्यन्त भेदक शरारती गेम खेलने की योजना उसने बनायी है यह स्पष्ट है। लेकिन सैद्धान्तिक कसौटी पर देखे तो बंटवारे के इस फार्मूले का निश्चित तौर पर अपना वजन है। बाबा साहब अंबेडकर ने जाति व्यवस्था के पक्केपन के पीछे उसकी अभियान्त्रिकी का कमाल बताया था। उन्होंने कहा था कि जाति व्यवस्था की संरचना सीढ़ी नुमा है। इसमें हर जाति को अपने बाद की सीढ़ी पर खड़ी जाति के मुकाबले ऊंचा होने का जो सुख मयस्सर है उसका चस्का इतना मीठा लगता है कि वह उसे छोड़ना नही चाहता। इसलिए उत्पीड़ित अपमानित जातियां इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए आपस में भी एक जुट नही हो पाती। बाबा साहब अंबेडकर के इस आंकलन में सोलह आना व्यवहारिक सच्चाई है। पिछड़ों में भी सशक्त जातियां इस ग्रंथि की शिकार हैं। इसलिए उन्हें इस वर्ग के तलछट की जातियों के उत्थान में बहुत दिलचस्पी नही है। अगर होती तो मुलायम, लालू आदि अपने शासन में ही ऐसे किसी फार्मूले को अमली रूप देकर भाजपा जैसी पार्टी के लिए इसकी गुंजाइश ही न छोड़ते। पर उन्होंने पिछड़ों के पूरे आरक्षण का इस्तेमाल केवल अपनी जाति के लिए करके सामाजिक न्याय की प्रगति को पीछे धकेल देने का काम किया। ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि उन्होंने 1 लाख 60 हजार नौकरी पेशा के बीच में सर्वे किया तो यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि पिछड़ी जातियों की सूची में दर्ज 1/4 प्रभावशाली जातियों ने 97 प्रतिशत आरक्षण हथिया लिया जबकि 3 चौथाई जातियों को केवल 3 प्रतिशत आरक्षण की खुरचन में संतोष करना पड़ा। इनमें 983 तो ऐसी जातियां हैं जिन्हें आज तक आरक्षण का कोई लाभ नही मिला है। सत्ताधीश पिछड़े नेताओं के इन्हीं कर्मों का फल है कि आज भाजपा पीडीए में सेंधमारी के लिए इतनी कारगर रणनीति पर विचार कर पा रही है।

नई पहल के लिए पिछड़े नेताओं पर निगाहें
कुलीनता का तात्पर्य केवल सत्ता और ऐश्वर्य नही है। कुलीनता संस्कारों का नाम है। कुलीन संस्कारों का ही परिणाम है कि समाज को औपनिवेशिक जकड़ में रखने वाले सवर्ण समाज में ऐसे अग्रदूत पैदा हो सके जिन्होंने सामाजिक न्याय के रथ को आगे बढ़ाने का जिम्मा धारा के विपरीत खड़े होकर उठाया। फिर भले ही वे पिछड़ों ने बांधी गांठ, सौ में पांवे साठ का नारा देने वाले युग पुरुष डा. राममनोहर लोहिया हो या उनके साथी, अनुयायी मधु लिमये, मधु दंडवते, राजनारायण, जनेश्वर मिश्रा आदि हों या मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने वाले वीपी सिंह हों। लोग यह कम जानते होंगे कि उनके पहले 1980 में उनके साथ मुख्यमंत्री बने अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कदम उठा चुके थे। हालांकि अदालत ने इसमें रोक लगा दी थी। इसी तरह उत्तर प्रदेश में पिछड़ों को 15 प्रतिशत आरक्षण का सूत्रपात 1988 में नारायण दत्त तिवारी ने किया था। पिछड़ी जातियों के नेताओं को भी समर्थ हो जाने के बाद उदात्त चरित्र के प्रदर्शन की आवश्यकता महसूस करनी चाहिए। अपने से कमजोर वर्ग को आगे बढ़ाने की पहल का नैतिक साहस उन्हें दिखाना होगा। तभी उनकी सम्पन्नता और शक्ति में कुलीनता का संस्पर्श महसूस किया जायेगा। सामाजिक न्याय का मतलब अपनी जाति के वर्चस्व को मजबूत करना नही है। डा. अंबेडकर और डा. लोहिया राजनैतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए सामाजिक लोकतंत्र को आवश्यक बताते थे। पर सामाजिक लोकतंत्र जातियों को मिटाने से बनेगा। जातियों के पिरामिड में अपनी जाति को सबसे ऊपर ले जाने की ललक से तो जातियां नही मिट सकतीं।

पीडीए की काट में कितना कारगर होगा पैंतरा
भाजपा खेमे में पीडीए की काट के लिए नये-नये शस्त्र ईजाद किये जा रहे हैं। अब क्या होता है यह तो सत्तारूढ़ पार्टी के आरक्षण बटवारे के पैंतरे पर पीडीए वादी दलों की प्रतिक्रिया से सामने आयेगा। लेकिन पिछड़ों के आरक्षण के बटवारे के साथ एक और कार्रवाई जुड़ी हुई है जिसकी पूर्ति के सवाल पर मोदी और योगी सरकार क्या कहेगी। यह कार्रवाई है पिछड़ों को उनकी संख्या के मुताबिक भागीदारी के लिए उनके आरक्षण का अनुपात 27 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत आरक्षण किया जाना। बात निकली है तो दूर तलक जायेगी। पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे का ब्रह्मास्त्र दागने के पहले क्या उनके लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान की घोषणा का इरादा भी उसने बना रखा है यह इस संदर्भ में सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है।

केंद्रीय नेतृत्व के आशीर्वाद की प्रतीक्षा
हालांकि राज्य सरकार के इस इरादे की कामयाबी अभी केंद्रीय नेतृत्व की मर्जी पर निर्भर है। योगी केंद्रीय नेतृत्व से इसे हरी झंडी दिलवाने के लिए संपर्क साधे हुए हैं जबकि अभी उसने अपना रुख स्पष्ट नही किया है। इस उधेड़बुन में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की प्रक्रिया लटक गयी है। प्रदेश के पंचायती राज विभाग ने काफी पहले राज्य सरकार को पंचायती राज संस्थाओं में पिछड़ा आरक्षण के लिए समर्पित आयोग के गठन का प्रस्ताव भेज दिया था। जिस पर सरकार अभी तक कोई कार्रवाई नही कर सकी है। सरकार जब इस आयोग का गठन कर देगी तब अग्रिम कार्रवाई के तौर पर आयोग के सदस्य हर जिले का दौरा करेगें और इसमें पिछड़ों की आबादी का सर्वे किया जायेगा। इस कार्य में लगभग 6 महीने लगना तय है। अगर पिछड़ों के आरक्षण का बटवारा होता है तो सर्वे का प्रारूप बदल जायेगा। ऐसे में पंचायत चुनाव समय पर न हो पाना तय है। आरक्षण के बटवारे पर केंद्र का रुख अगर कुछ दिनों में साफ नही हो पाता है तो फिर राज्य सरकार को अपनी योजना ठंडे बस्ते में डालकर पिछड़ा वर्ग के पुराने आरक्षण के तहत ही चुनाव कराने पड़ेगें।







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