
इस्लाम चरित्र को मांजने के लिए तमाम पाबंदियों पर जोर देता है। उसमें शेरो-शायरी की, चित्रकारी की, मनोरंजन की और विलासी रहन-सहन की सख्त मुमानियत है। यह बंदिशें इसलिए हैं तांकि आदमी को शैतान भटका न सके। लेकिन क्या कारण है कि इतने नियम-संयम के बावजूद इस्लाम औरत के सामने दिखते ही आदमी का इमान डोल जाने के अंदेशे से घबराया रहता है। औरतों को इस कदर पर्दे में जकड़कर रखने की उसकी कोशिश बीमारी का रूप लेती दिखाई देती है। अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत में शासन शरीया के मुताबिक चलाने का सपना हावी है। भारत का ही उदाहरण ले ले तो 26 जनवरी 1950 को मुकम्मल समझकर देश में लागू किया गया संविधान हर रोज कुछ न कुछ बदलना पड़ता है। अभी तक 106 संशोधन हमारे संविधान में शामिल किये जा चुके हैं लेकिन 1400 वर्ष पहले की स्थितियों में लागू की गयी शरीयत अभी भी ज्यों की त्यों मानी जाये यह सवाल इस्लाम में पूंछा जाना कठिन है। इसलिए दुनियां के साथ कदम ताल करके चलने में अफगानिस्तान जैसे शुद्धतावादी इस्लामी देश को मुश्किलें झेलनी पड़ रहीं हैं। गत दिनों अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी नई दिल्ली आये थे तो उनके सामने ऐसी ही एक मुश्किल दरपेश आई। अफगानिस्तानी दूतावास में मुत्ताकी की पत्रकार वार्ता आयोजित हुई तो उसमें किसी महिला पत्रकार को बैठने की इजाजत नही दी गयी। यह शरीय विश्वास का नतीजा था। इस पर नई दिल्ली की अधुनातन मीडिया ने हल्ला काट दिया। पाकिस्तान की घेराबंदी से तालिबानी हुकूमत बुरी तरह परेशान है। बाकी दुनियां में भी उसके लिए अघोषित बहिष्कार जैसी स्थिति है। नई दिल्ली ने उसके लिए दरवाजे खोले तो उसे कुछ संबल मिला इस कारण वह महिला पत्रकारों के मुददे पर बिगाड़ होने के डर से बैकफुट पर आ गया। अगले दिन फिर प्रेस वार्ता आयोजित की गयी जिसमें महिला पत्रकारों को न केवल आमंत्रित किया गया बल्कि उन्हें आगे की पंक्ति में बैठाया गया। उनके कड़े से कड़े सवाल का मुत्ताकी ने सहज रहकर जबाव दिया। उनके साथ कोई टोकाटाकी नही की गयी।

ममता बनर्जी की साफगोई
इसी संदर्भ में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दुर्गापुर में मेडिकल कॉलेज की छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में बयान सामने आया जिसमें उन्होंने निजी मेडिकल कॉलेजों को हिदायत दी कि वे छात्राओं को रात में छात्रावास से बाहर जाने से रोकें। छात्राओं से भी कहा कि वे भी इस मामले में नियमों का पालन करें तांकि उनके साथ कोई अप्रिय घटना न हो। इन दोनों घटनाओं से आधुनिक समाज में महिलाओं के लिए बदलते परिवेश और उनकी सुरक्षा के बीच आ रही कशमकश की स्थिति का परिचय मिलता है। सभ्यता के पहले पायदान पर जिस संयम का प्रतिपादन हुआ वह यौन संयम था। माना जाता है कि पाकीजगी से आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है इसलिए हमारे यहां भी ऋषि-मुनि तप के नाम पर यौन तृष्णा पर पूर्ण विजय की साधना करते थे। लेकिन अप्सरायें सामने आती थीं तो इतने अभ्यास के बाद भी पहुंचे हुए ऋषियों तक का संयम टूट जाता था। विश्वामित्र और मेनका की कहानी सर्वविदित है। आदि देव शंकर ने साधना से जितेंद्रिय स्थिति प्राप्त कर ली थी इसलिए जब कामदेव उन्हें डिगाने आया तो उसे भस्म हो जाना पड़ा। कहने का मतलब यह है कि चाहे जितनी इबादत कर लो, साधना कर लो लेकिन विरले अपवादों को छोड़कर हर परिस्थिति में किसी के यौन संयम की गारंटी नही ली जा सकती। इसलिए महिलाओं की सुरक्षा हेतु बाहरी प्रावधान आवश्यक हैं। इस्लाम में इसी कारण महिलाओं के लिए पर्दे का कठोर प्रावधान हैं लेकिन पूरी दुनियां में खुलेपन का माहौल छा चुका है। हर समय महिला को पर्दे में रखा जाना संभव नही है। उन्हें खेलकूंद के लिए स्कूल भेजने, पुरुषों के साथ सफर करने, साथ काम करने से रोका जाना यह सब कैसे संभव है। इस्लामिक दुनियां में शरीया धर्म संकट का कारण बन गयी है। आजकल दुनियां में महिलावादी सशक्त संगठन खड़े हो गये हैं जो महिलाओं के लिए दकियानूस रवैये के खिलाफ जोरदारी से खड़े हो जाते हैं। नई दिल्ली में इन्हीं के कारण तालिबान हुकूमत को समझौते पर आना पड़ा।

इंद्रिय निग्रह के प्रयासों की सीमित सफलता
ऐसी स्थिति में जब इंद्रिय निग्रह के प्रयासों की सीमा रेखांकित हो चुकी है तो व्यवस्था को यौन अत्याचारों से महिलाओं की हिफाजत के लिए प्रयत्न करने पड़ेगें जिसमें महिलायें पूर्वाग्रह छोड़कर सहयोग देने को तत्पर हों तभी बात बनेगी। कुछ वर्ष पहले जब महिलाओं के अंग दिखाऊ कपड़ों पर उंगली उठाई जाती थी तो उनके रेडिकल ग्रुप यह कहते हुए आड़े आ जाते थे कि महिलाओं का ड्रेस कोड तय करने का पुरुषवादी प्रयास स्वीकार नही किया जायेगा। संस्कृतिवादी संगठन और दल नारीवाद के इस फैशन को लेकर नाक-भौं सिकोड़ते थे। लेकिन आज जबकि तथाकथित आधुनिक समाज महिलाओं से यौन उद्दीपक आचरण पर अंकुश के लिए आत्मानुशासन की अपेक्षा को सही ठहराने लगा है तो संस्कृति के ठेकेदार अपनी प्रतिबद्धता से मुकरते नजर आ रहे हैं। केंद्र और उत्तर प्रदेश में एक ही पार्टी की डबल इंजन सरकार है फिर भी शादियों में किशोरियों से वेटर की सेवा का चलन बढ़ता ही जा रहा है। कैटरिंग ठेकेदार उन्हें अर्धनग्न रहकर खाना-पीना सर्व करने को बाध्य करता है और पैसे के लिए उन्हें यह सब करना पड़ता है। अपने आप को बहुत सदाचारी और संयमी करने वाले संघ परिवार के लोग तक अपने यहां के कार्यक्रमों में इसके लिए मना नही करते। फिल्मों में अश्लील दृश्य देने वालीं अभिनेत्रियों को संसद में स्थान दिलाकर महिमा मंडित किया जा रहा है। धर्म और संस्कृति के नाम पर तमाम चीजों में जीना हराम कर देने वाले नैतिक पुलिसिंग के ठेकेदार अपनी सरकार से फिल्मों और क्रिकेट में यौन उद्दीपन के माहौल को कम तक कराते नही दिख रहे। ऐसे में आलोचना के लिए आलोचना करने की बजाय ममता बनर्जी ने जो कहा उसे एक वास्तविकता के रूप में समझा जाना चाहिए। महिलाओं पर इतने प्रतिबंध भी न थोपे जायें जो उनके स्वतंत्र विकास और आत्मसम्मान में खलल का कारण बनें लेकिन लैगिंक स्वतंत्रता को स्वच्छंदता में बदलने की स्थितियों को भी प्रोत्साहित न किया जाये जो कि वास्तव में स्वयं महिलाओं के लिए आत्मघाती कदम है।







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