उत्तर प्रदेश में सत्ता के अन्तःपुर की राजनीति अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गयी है। मीडिया का एक वर्ग अभी भी योगी के हटने की तोता रटंत दोहराने में लगा है लेकिन भाजपा के अंदर का शक्ति संतुलन इस बीच काफी बदल चुका है। हुआ यह है कि योगी आदित्यनाथ ने अपना भविष्य निष्कंटक बना लिया है। उनकी अस्थिरता की खबरे प्रसारित कराने के लिए फंडिंग करने वाले उनके दोनों उप मुख्यमंत्री बिहार चुनाव के बाद निपट जायें तो आश्यर्च न होगा। केंद्रीय नेतृत्व में उनके सरपरस्त नेताओं से योगी का अंदरखाने बेहतरीन तालमेल होने के मजबूत संकेत हाल के घटनाक्रम से उभरे हैं।
केशव और बृजेश को जानबूझकर चहकाया
अयोध्या में छोटी दीपावली के दिन आयोजित दीप महोत्सव के दौरान जो उथल-पुथल हुई वह नाप तौलकर अंजाम दी गयी थी, अब यह जाहिर हो चुका है। दीप महोत्सव के अखबारों को दिये गये फुल पेज विज्ञापन में योगी और मोदी के आदमकद चित्रों के अलावा राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के साथ केवल दो मंत्री जिनमें अयोध्या के प्रभारी सूर्यप्रताप शाही और पर्यटन विभाग जिसके सौजन्य से यह आयोजन कराया गया था उसके मंत्री जयवीर सिंह मात्र चस्पा थे। लेकिन दोनों उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और बृजेश पाठक के नाम विज्ञापन में गोल कर दिये गये थे। प्रोटोकॉल के विपरीत यह अनदेखी बर्दास्त करने योग्य नही थी इसलिए विज्ञापन देखकर दोनों उप मुख्यमंत्रियों का पारा चढ़ गया। केंद्रीय नेतृत्व के दुलारे केशव मौर्य बिहार में चुनाव के सह प्रभारी बनाये गये हैं तांकि उनका जलबा बुलंद हो सके। वे बेचारे दीप महोत्सव की भारी भीड़ को अपना चमकता चेहरा दिखाने के लिए चुनाव अभियान की व्यस्तता छोड़कर एक दिन पहले मान्य की तरह इतराते हुए लखनऊ पधार चुके थे। बृजेश पाठक भी सजधज कर दीप महोत्सव के मंच पर विराजमान होने के लिए बेताब थे पर दोनों ने देखा कि विज्ञापन में नाम न देकर सरेआम उनकी फजीहत की गयी है तो दोनों बुरी तरह भड़क गये। दोनों ने तत्काल ही केंद्रीय नेतृत्व से रोना रोया और अयोध्या के अपने कार्यक्रम को रदद करने की सूचना प्रसारित करा दी। उनकी अवमानना के विरोध में राज्यपाल महोदया ने भी अयोध्या जाना त्याग दिया। राजनैतिक प्रेक्षक अंदाजा लगा रहे थे कि इन गणमान्यों के बहिष्कार से लखनऊ से लेकर दिल्ली तक तहलका मच जायेगा जिसकी बड़ी कीमत चुकाने की नौबत योगी के लिए आ सकती है। यह भी कयास लगाये जा रहे थे कि राज्यपाल और दोनों उप मुख्यमंत्रियों के कोप भवन में जाने के बाद मुख्यमंत्री की सिटटी-पिटटी गुम हो गयी होगी।
सूचना विभाग पर नाहक फोड़ा ठीकरा
विश्लेषकों का अनुमान यह था कि इसके पीछे मुख्यमंत्री की दिलेरी नही हो सकती। इसे चूंक का नतीजा मानकर सारा ठीकरा सूचना विभाग के सिर फोड़ा जा रहा था। कहा जा रहा था कि इस विभाग के चाटुकार अफसरों ने मुख्यमंत्री के प्रति ज्यादा स्वामी भक्ति दिखाने के चक्कर में यह नादानी कर दिखाई जिसे योगी आदित्यनाथ चैक नही कर पाये। अब योगी पछताना पड़ रहा होगा। योगी के लिए हद दर्जे की दुर्भावना से ग्रसित सोशल मीडिया के धुरंधरों का एक वर्ग प्रचारित कर रहा था कि इस गुस्ताखी को लेकर योगी दिल्ली दरबार में तलब कर लिये गये हैं जबकि वे उस दिन गाजियाबाद में बने एक अत्याधुनिक निजी अस्पताल के उदघाटन के लिए राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित करने गये थे। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी शिष्टाचार मुलाकात कर ली। साथ ही नये उप राष्ट्रपति से उनका मुलाकात करना भी शिष्टाचार के नाते बनता था सो उन्होंने उप राष्ट्रपति से भी भेंट की। अगर योगी तलब किये गये होते या उप मुख्यमंत्रियों के असम्मान के संदर्भ में सफाई देने गये होते तो प्रधानमंत्री से मिलते और गृह मंत्री से मिलते। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति से राजनैतिक बातों के लिए मिलने का क्या औचित्य था। लेकिन दुर्भावना का जहर बुद्धि विवेक नष्ट कर डालता है इसलिए यह सोचने की फुर्सत लोगों को कैसे मिल सकती थी।
बृजेश पाठक की लगातार बेइज्जती
अगले दिन योगी के निमंत्रण पर राष्ट्रपति महोदया गाजियाबाद पहुंचीं। इस दौरान अस्पताल उदघाटन समारोह में उनके साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी रहे। राज्य सरकार की ओर से स्वयं मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा होने के नाते समारोह में थे। मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम के बारे में अपने एक्स हैडिंल से फोटो सहित ट्वीट किया। चूंकि बृजेश पाठक मुख्यमंत्री के साथ ही खड़े थे तो फोटो में तो उनका चेहरा आ गया लेकिन योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट में जो लिखा उसमें उन्होंने बृजेश पाठक के नाम का उल्लेख करने की कोई जरूरत नही समझी। फिर भी मुख्यमंत्री का बुलंद आत्मविश्वास सोशल मीडिया के तलवारबाजों को नही दिखायी दिया और वे उनके अमंगल की ही कामना में लगे रहे। अगले दिन जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा और अमित शाह से मुलाकात की तो फिर सोशल मीडिया मंचों पर उनके लिए अनिष्टकारी अटकलों का दौर शुरू हो गया। तभी लखनऊ में भोजपुरी समाज द्वारा परंपरानुसार छठ महोत्सव लक्ष्मण झूला मैदान में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में फिर मुख्यमंत्री के साथ उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक उपस्थित थे। इस कार्यक्रम को भी मुख्यमंत्री ने जब ट्वीट किया तो इस बार भी उन्होंने फिर बृजेश पाठक का उल्लेख छोड़ दिया। क्या मुख्यमंत्री यह आत्मबल इसलिए दिखा रहे थे कि उन्हें आत्मघात का शौक चर्रा उठा था।
सीएम की ओर से दोनों नायबों की मान्यता निरस्त
पूंछा जाना चाहिए कि अगर मुख्यमंत्री केंद्रीय नेतृत्व द्वारा डांटे गये होते या किसी तरह से भय ग्रस्त होते तो क्या बार-बार बृजेश पाठक का नाम भूल जाने की हिमाकत वे कर सकते थे। लेकिन वास्तविक स्थिति को तो आप तब पढ़ सकते हैं जब आप निर्मल मन से घटनाओं को परख रहे हों। प्रसंग तो इस ओर इशारा कर रहे है कि मुख्यमंत्री ने दो टूक रवैया दिखाते हुए अपनी तरफ से दोनों उप मुख्यमंत्रियों की मान्यता रदद कर दी है। जो निष्पक्ष खबरे मिल रही हैं उसके मुताबिक योगी आदित्यनाथ ने अमित शाह के सामने साफ कर दिया है कि आपके प्रतिद्वंदी के रूप में मुझे पेश किया जाना एक साजिश है जबकि वे पहले उत्तर प्रदेश को सुधारने का इरादा बनाये हुए है जिसके लिए उन्हें इस कार्यकाल के अलावा कम से कम एक और कार्यकाल तक लखनऊ से कहीं नही जाना। ऐसे में मेरे लिए प्रधानमंत्री मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में स्वयं को देखने का सवाल ही नही उठता। अमित शाह को भी इसके बाद मानना पड़ा है कि वास्तव में योगी को दिल्ली आने को कतई अधीर नही होगें। इसके बाद उनके मन में योगी को लेकर सारे गिले-शिकवे खत्म हो गये हैं।
अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे रहे नायब
योगी ने इसी कड़ी में उनसे और जेपी नडडा से कहा है कि उत्तर प्रदेश में उनको स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाये। पार्टी की भी इसमें भलाई है। उप मुख्यमंत्रियों के रहने से समानान्तर शक्ति केंद्र की धारणा सरकार के इकबाल को प्रभावित कर रही है जिसका असर सरकार के कार्य संचालन पर हो रहा है। दोनों उप मुख्यमंत्री पार्टी में अनुशासन हीनता को हवा देने का काम कर रहे हैं। वे सुचारू रूप से काम कर सकें इसलिए इनकी विदाई की अनुमति उन्हें दी जाये। संभवतः अमित शाह और नडडा ने उनका यह आग्रह स्वीकार भी कर लिया है। यह भी पता चला है कि योगी ने ही अपनी तरफ से बिहार सहित बाहरी राज्यों के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी से उन्हें यथा संभव मुक्त रखने का आग्रह किया है तांकि वे ठीक से प्रदेश सरकार चला सकें। योगी के इस अनुरोध ने अमित शाह को आश्वस्त करने में और बड़ी भूमिका निभाई है क्योंकि अगर योगी अति महत्वाकांक्षी होते तो राष्ट्रीय स्तर पर अपना कद मजबूत करने के लिए वे चाहते कि बाहरी राज्यों में भी उनको ज्यादा से ज्यादा एक्सपोजर मिले लेकिन अब वे जब यह कह रहे हैं कि उन्हें उत्तर प्रदेश में ही काम करने के लिए पूरा समय चाहिए तो स्पष्ट है कि उनकी नीयत साफ है। योगी के हटने का सपना देखने वाले पत्रकार इसे लेकर भी यह प्रचारित करने में जुट पड़े हैं कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें बिहार के चुनाव से दूर कर दिया है। योगी से जलन के कारण वे यह बताने में लग गये हैं कि केशव मौर्य बिहार जाकर बड़े किले भेद रहे हैं लेकिन बिहार में केशव मौर्य की कवायद को वहां की मीडिया में नोटिस लिया जा रहा हो यह कहीं नही दिख रहा।
अमित शाह ने भी किया मन साफ
उधर अमित शाह ने भी पूरा गुणा भाग कर लिया है जिसमें उन्हें योगी को प्रसन्न रखने में ही गनीमत नजर आ रही है। उन्हें एहसास है कि अगर योगी को इधर-उधर किया गया तो उत्तर प्रदेश में राजपूतों के वोट से पार्टी को पूरी तरह हाथ धोना पड़ेगा। हालांकि राजनाथ सिंह इन दिनों मोदी के बहुत बड़े वफादार बन गये हैं पर 2024 के लोक सभा चुनाव के रुझानों से ही यह उजागर हो चुका है कि राजपूतों में योगी की पकड़ के मुकाबले राजनाथ सिंह कही नही रह गये। अगर योगी को हिलाया-डुलाया गया तो राजपूत वोट भाजपा से एक दम छिटक जायेगा जिसे राजनाथ सिंह बिल्कुल भी नही रोक पायेगें। इसके कारण उत्तर प्रदेश में भाजपा की बुरी गत हो जायेगी। जाहिर है कि इस गणित से अमित शाह समझ चुके हैं कि योगी को छेड़ना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा। मोदी के उत्तराधिकारी होने का उनका सपना पूरा होने के पहले ही बिखर जायेगा। इसलिए उन्होंने योगी के सामने हथियार डाल दिये हैं। जो लोग योगी की छुटटी का अनुमान लगा रहे हैं वे बहुत जल्द ही देखेगें कि छुटटी दोनों उप मुख्यमंत्री अपनी करा बैठे हैं।
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