नीतीश के नेतृत्व में नया आगाज 

-राधा रमण 

बाजीगर! जी हां, बाजीगर कहना ही समीचीन होगा। जिसे चुनावी चक्रव्यूह में विपक्षी दलों के अलावा सहयोगी भी अंदरखाने घेरने में जुटे हों और वह सबको चकमा देकर अपनी पार्टी के 101 उम्मीदवारों में से 85 को जिता ले जाए और बिहार के इतिहास में सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बना जाए तो उसे बाजीगर ही कहेंगे। आप ठीक समझ रहे हैं। हम बात बिहार के 10 वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार की कर रहे हैं। 

बिहार विधानसभा के 20 मई 1952 को अस्तित्व में आने के बाद से 18 बार चुनाव हो चुके हैं। इस दौरान कुल 23 लोगों ने मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया। इनमें 3-3 बार डॉ श्रीकृष्ण सिंह, भोला पासवान शास्त्री और डॉ जगन्नाथ मिश्र और राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। गौरतलब है कि इनमें डॉ श्रीकृष्ण सिंह अकेले ऐसे नेता रहे जो एक बार शपथ लेने के बाद आजीवन मुख्यमंत्री रहे। भोला पासवान शास्त्री, डॉ जगन्नाथ मिश्र और राबड़ी देवी समय-समय पर मुख्यमंत्री बनते रहे, लेकिन किसी ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री बने लेकिन दोनों शपथ ग्रहण के बीच अंतराल था। वह पहली बार 1970 में महज 163 दिन के लिए और दूसरी बार 1977 में एक साल 301 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे। लालू प्रसाद यादव ने एक बार अपना कार्यकाल पूरा किया लेकिन बहुचर्चित चारा घोटाले में घिर जाने के बाद उन्हें दूसरे कार्यकाल के बीच ही पद छोड़कर जेल जाना पड़ा। बाकी के मुख्यमंत्रियों दीप नारायण सिंह, विनोदानंद झा, कृष्ण वल्लभ सहाय, महामाया प्रसाद सिन्हा, सतीश प्रसाद सिंह, विन्देश्वरी प्रसाद मंडल, हरिहर सिंह, दारोगा प्रसाद राय, केदार पांडेय, अब्दुल गफूर, रामसुन्दर दास, चंद्रशेखर सिंह, बिन्देश्वरी दूबे, भागवत झा आजाद, सत्येन्द्र नारायण सिन्हा और जीतनराम मांझी का कार्यकाल पांच साल से कम रहा। दीप नारायण सिंह 17 दिन और सतीश प्रसाद सिंह तो महज 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। ऐसे में सर्वाधिक दिन तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड भी नीतीश कुमार के नाम ही है। हालांकि 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार भी महज 7 दिनों के लिए ही मुख्यमंत्री बने थे लेकिन पांच वर्ष बाद उन्होंने जोरदार वापसी की। फिर 8 साल 177 दिन लगातार मुख्यमंत्री रहे। 2014 में एनडीए से अलग होने के बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन मन मुताबिक काम नहीं होने के कारण 278 दिन बाद 22 फरवरी 2015 से लगातार मुख्यमंत्री हैं। इस दौरान दो बार महागठबंधन के सहयोग से सत्ता की कमान अपने हाथ में रखी। इसीलिए विरोधी उन्हें पलटूराम भी कहते हैं। हालांकि सियासत में पलटूराम सिर्फ नीतीश कुमार ही नहीं हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और उनके पिता शकुनी चौधरी समेत कई नेता घाट-घाट का पानी पी चुके हैं। राजनीति में सबकुछ जायज है। चाल, चरित्र और चेहरा का कोई अर्थ नहीं रह गया है। नेता सुविधा के अनुसार सिद्धांत गढ़ते रहते हैं। जनता भी इसका बुरा नहीं मानती है। 

नई सरकार, नया आगाज  

राज्य में 18 वीं विधानसभा के गठन के बाद नई सरकार ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में अपना कामकाज संभाल लिया है। नई सरकार में नीतीश के अलावा 26 मंत्री बनाए गए हैं। इनमें सबसे अधिक भाजपा के दो उप मुख्यमंत्रियों समेत 14 मंत्री, जदयू के 8 मंत्री, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के दो मंत्री और हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा तथा राष्ट्रीय लोक मोर्चा के 1-1 मंत्री शामिल हैं। मंत्रिमंडल में अभी 10 स्थान खाली रखा गया है, जिसे बाद में आवश्यक होने पर भरा जाएगा। 

परिवारवाद से परहेज नहीं

परिवारवाद के खिलाफ अभियान चलाती रही भाजपा और एनडीए के नेताओं ने नई सरकार में जमकर परिवारवाद का पोषण किया है। उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के पुत्र हैं तो पहली बार मंत्री बनीं श्रेयसी सिंह पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की पुत्री हैं। रमा निषाद पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी हैं तो संजय सिंह टाइगर पूर्व विधायक धर्मपाल सिंह के भाई हैं। जदयू कोटे से मंत्री बने अशोक चौधरी पूर्व मंत्री महावीर चौधरी के बेटे हैं तो लेसी सिंह समता पार्टी के नेता रहे मधुसूदन सिंह की पत्नी हैं। इसी तरह विजय चौधरी पूर्व विधायक जगदीश प्रसाद चौधरी के पुत्र हैं। मंत्री सुनील कुमार पूर्व मंत्री चन्द्रिका राम के बेटे हैं। जीतनराम मांझी तो परिवारवाद के पुरोधा बन गए हैं। उन्हें आवंटित छह सीटों में से 4 पर उन्होंने अपने परिजनों को चुनाव लड़ा लिया था। एनडीए की सुनामी में चारों – समधिन, बहू, भतीजा और दामाद चुनाव जीत भी गए। उन्होंने अपने कोटे से विधान परिषद् सदस्य बेटे संतोष कुमार सुमन को मंत्री बनाया है। अब बचे राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा। इस बार के चुनाव में उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा विधायक बनी हैं। लेकिन उन्होंने अपने बेटे दीपक प्रकाश को अपने कोटे से मंत्री बनाया है। दीपक फिलहाल किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। सूत्रों के अनुसार, चुनाव पूर्व हुई डील के मुताबिक दीपक को भविष्य में विधान परिषद् का सदस्य बनाया जाएगा। 

भ्रष्टाचार नहीं कोई मुद्दा 

विधानसभा चुनाव में लालू यादव के भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर एनडीए के तमाम नेताओं ने जोर-शोर से हमला बोला था। लेकिन जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी, दिलीप जायसवाल, मंगल पाण्डेय और अशोक चौधरी पर जो आरोप लगाये थे, उस पर किसी ने कुछ नहीं बोला। यहां तक कि आरोपित नेताओं ने भी मुंह बंद कर लिया। यहां तक कि प्रशांत के आरोपों पर सफाई मांगने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री राज कुमार सिंह (आर के सिंह) को चुनाव परिणाम आते ही भाजपा ने पार्टी से निकाल दिया। अब नीतीश कुमार ने न जाने किस दबाव में आरोपित नेताओं को अपनी कैबिनेट में शामिल कर लिया। यह वही नीतीश हैं जिन्होंने तेजस्वी पर आरोप लगने मात्र से महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था और इस्तीफा दे दिया था। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 12 मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।  

आगे की चुनौतियां 

विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार सरकार ने जमकर रेवड़ियां बांटी थी। 125 यूनिट मुफ्त बिजली दिया। एक करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये डाले। जीविका दीदियों को 10 हजार अलग से दिये। दिहाड़ी मजदूरों को कपड़ा खरीदने के लिए 5 हजार रुपये दिये। रिटायर पत्रकारों का पेंशन 15 हजार कर दिया। वृद्धावस्था पेंशन बढ़ाया। छह माह बाद एक करोड़ महिलाओं को रोजगार के लिए दो-दो लाख कर्ज देने का वादा किया। इससे राज्य के खजाने पर करीब 40 हजार करोड़ का बोझ बढ़ा। बिहार की माली हालत पहले से खराब है। राज्य सरकार को प्रतिदिन करीब 63 करोड़ रुपये व्याज के देने पड़ते हैं। राज्य का कुल बजट 3 लाख 16 हजार करोड़ का है। ऐसे में नई सरकार के समक्ष चुनौतियां बड़ी हैं। देखना होगा कि सरकार आगे का रास्ता कैसे तय करती है।

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