फर्रुखाबाद।
सुशासन केवल एक प्रशासनिक शब्द नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा है—और इस आत्मा को व्यवहार में उतारने का उदाहरण यदि भारतीय राजनीति में किसी ने दिया, तो वह थे भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेयी। उनके जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर फतेहगढ़ स्थित कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित सुशासन दिवस का कार्यक्रम इसी विचार को केंद्र में रखकर संपन्न हुआ।

उच्च शिक्षा विभाग के तत्वावधान में आयोजित इस विचार गोष्ठी एवं पुरस्कार वितरण समारोह ने यह स्पष्ट किया कि अटल जी का सुशासन केवल नीति पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि संवेदनशील नेतृत्व, संवाद आधारित राजनीति और जनहितकारी निर्णयों का जीवंत उदाहरण है।

कार्यक्रम का शुभारंभ माननीय सांसद मुकेश राजपूत द्वारा अटल जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इसके बाद जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने सांसद को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। यह औपचारिकता मात्र सम्मान का प्रतीक नहीं थी, बल्कि उस परंपरा का संकेत थी जिसमें राजनीति और प्रशासन मिलकर लोकतंत्र को सशक्त करते हैं

अपने संबोधन में सांसद मुकेश राजपूत ने अटल जी को भारतीय राजनीति का विरल व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने सत्ता को सेवा और शासन को संवेदना से जोड़ा। वहीं जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने कहा कि सुशासन का वास्तविक अर्थ तभी सिद्ध होता है, जब योजनाओं का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह बने—यही अटल जी की सबसे बड़ी विरासत है।

कार्यक्रम के दौरान लखनऊ में आयोजित मुख्य समारोह का सीधा प्रसारण देखा गया, जिसने इस आयोजन को राज्य स्तर की व्यापक सोच से जोड़ा। इसके बाद विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत विचारों ने यह संदेश दिया कि अटल जी की विचारधारा केवल अतीत नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन है

सुशासन सप्ताह के अंतर्गत आयोजित भाषण, एकल काव्यपाठ और निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी ने यह स्पष्ट किया कि लोकतंत्र की जड़ें तभी मजबूत होती हैं, जब युवा वर्ग विचारशील, जागरूक और संवेदनशील बने। विजेताओं को सम्मानित करना केवल पुरस्कार वितरण नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों में निवेश था।

इस आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि सुशासन को केवल सत्ता की भाषा नहीं, बल्कि नैतिकता, उत्तरदायित्व और पारदर्शिता के रूप में प्रस्तुत किया गया। पुलिस अधीक्षक श्रीमती आरती सिंह, मुख्य विकास अधिकारी, जिला विकास अधिकारी, पीडी डीआरडीए और जिला विद्यालय निरीक्षक सहित प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति ने यह संदेश दिया कि सुशासन एक व्यक्ति या विभाग नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रशासनिक संस्कृति है।

अटल बिहारी बाजपेयी के जन्म शताब्दी वर्ष में आयोजित यह सुशासन दिवस कार्यक्रम केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि एक संकल्प बनकर उभरा—कि शासन सत्ता का नहीं, सेवा का माध्यम बने और लोकतंत्र विचार से आगे बढ़कर व्यवहार में उतरे।

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