इंसानियत ग्रुप बना उम्मीद की आख़िरी किरण, समाज से सहयोग की अपील
उरई/जालौन।
मासूमियत की उम्र में खिलौनों से खेलने वाली छह वर्षीय आरती आज जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है। ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी ने उसके बचपन से मुस्कान छीन ली है। नन्हा सा शरीर, सूनी आंखें और हर पल खून की कमी से जूझती यह बच्ची इंसानियत से मदद की गुहार लगा रही है।
उरई क्षेत्र के उमरार खेड़ा निवासी इस गरीब परिवार की बेटी आरती का इलाज लखनऊ मेडिकल कॉलेज में चल रहा है। बीमारी की गंभीरता ऐसी है कि बच्ची को बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ रही है। हर बार खून की तलाश, हर बार इलाज का खर्च—परिवार के लिए यह सब किसी दुःस्वप्न से कम नहीं।
पिता मजदूरी करते हैं, मां बेबस
आरती के पिता अशिक्षित हैं और बिहार में मेहनत-मजदूरी कर जैसे-तैसे परिवार का पेट पालते हैं। घर की हालत इतनी दयनीय है कि बैठने के लिए कुर्सी, लेटने के लिए बिस्तर और रोशनी के लिए बिजली तक की व्यवस्था नहीं है। मां और चार बेटियां उरई में बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवन गुजार रही हैं। बेटी के इलाज के लिए पिता लखनऊ मेडिकल कॉलेज के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
इंसानियत ग्रुप बना सहारा
ऐसे अंधेरे समय में इंसानियत ग्रुप मासूम आरती के लिए उम्मीद की रोशनी बनकर सामने आया है। ग्रुप के संचालक सुमित प्रताप सिंह ने बताया कि अब तक कई बार बच्ची के लिए रक्त की व्यवस्था कराई जा चुकी है। साथ ही, लोगों के सहयोग से आर्थिक मदद भी पिता तक पहुंचाई जा रही है। बावजूद इसके, इलाज लंबा और खर्चीला होने के कारण परिवार पर संकट लगातार गहराता जा रहा है।
सुमित प्रताप सिंह ने बताया कि जब उन्होंने लखनऊ मेडिकल कॉलेज में आरती और उसके पिता से मुलाकात की, तो उनकी आंखों में असहायता और दर्द साफ झलक रहा था। उस दृश्य ने ग्रुप के हर सदस्य को भीतर तक झकझोर दिया।
समाज से अपील
इंसानियत ग्रुप ने समाज के हर संवेदनशील व्यक्ति से अपील की है कि वह आगे आकर इस मासूम बच्ची की जान बचाने में सहयोग करे। आरती को लगातार रक्त की आवश्यकता है, साथ ही इलाज के लिए आर्थिक सहायता भी बेहद जरूरी है।
सुमित प्रताप सिंह कहते हैं,
“आज भी इंसानियत जिंदा है। बस जरूरत है मदद का हाथ बढ़ाने की। यदि समय रहते सहयोग मिल जाए, तो इस नन्ही जान को नई जिंदगी दी जा सकती है।”
छह साल की आरती आज हम सबसे एक ही सवाल पूछ रही है—
क्या इंसानियत अब भी जिंदा है?






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