लोकतंत्र को बहुमत का शासन कहा जाता है लेकिन यह भी दरअसल समाज के मुटठी भर सफेदपोश वर्ग जो
 कि वाचालता में निपुण होता है, का शासन होता है।
कारगिल युद्ध में राजीव नजर आने लगे थे फरिश्ता
दिलचस्प यह है कि सफेदपोशों को धारणाओं के मामले में गुलाट लगाने में देर नही लगती। अपने वर्ग-हित के सापेक्ष उनकी धारणा इस ध्रुव से उस धु्रव पर तपाक से जा बैठने में हिचकिचाहट महसूस नही करती। इनकी भी गति को समझने के लिए भौतिकशास्त्र में बताया जाने वाला आर्किमिडीज का सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है।
1999 में मई से जुलाई के बीच कश्मीर के कारगिल जिले की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा मुजाहिदीनों को आगे करके किये गये कब्जे को छुड़ाने के लिए कई चरणों में लड़ाई लड़ी गई थी।
बोफोर्स दलाली का मुददा उठाने के लिए गालियों से नवाजे जा रहे थे वीपी
27 किलोमीटर दूर तक मार करने वाली बोफोर्स तोपों ने भारत को इस युद्ध में निर्णायक विजय दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। सत्ता को नियंत्रित करने वाला सफेदपोश तबका उस समय बोफोर्स सौदे में दलाली की लेन-देन की वजह से राजीव गांधी को बदनाम करने के लिए वीपी सिंह को छुटटा गालियां देने में लगा था।
यह पहला मौका नही था जब ऐसा किया गया। इसके पहले जब दिल्ली हाईकोर्ट ने बोफोर्स सौदे की जांच सीबीआई द्वारा स्वीडन से कागजातों की सत्यापित प्रतिलिपि न जुटा पाने की वजह से दाखिल दफ्तर करने का फरमान सुनाया था तब भी ऐसा किया गया था।
चंद्रशेखर सरकार ने जब बोफोर्स सौदे की जांच में एफआर लगवा दी थी तब भी यही हुआ था। संदर्भ वीपी सिंह का हो तो अभी भी यह मुददा उठाने के लिए उन्हें मरणोपरांत गालियों से नवाजा जाने लगेगा और राजीव गांधी में फरिश्ते का अक्स दिखाया जाने लगेगा।
बोफोर्स तोप सौदे के संबंध में यह तय है कि इसमें दलाली की रकम का आदान-प्रदान हुआ था। साथ ही यह भी स्थापित है कि बोफोर्स तोप के चयन में गड़बड़ी नही थी और इसीलिए परीक्षा के समय यह भारतीय सेना के लिए वरदान साबित हुई थी।
परमाणु कार्यक्रम के लिए दलाली की रकम के इस्तेमाल की छपी थी खबरें
सत्ता साम-दाम-दण्ड-भेद से चलती है। जब वीपी सिंह बोफोर्स तोप सौदे में दलाली खाये जाने को लेकर आंदोलन कर रहे थे उस समय एक बड़े अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी थी कि बोफोर्स सौदे में मिली दलाली की रकम भारी जल की खरीद में इस्तेमाल की गई थी जिसकी चोरी से चलाये जा रहे परमाणु कार्यक्रम के लिए देश को जरूरत थी। चूंकि यह कार्यक्रम दुनियां की नजरों से बचाकर अंजाम दिया जा रहा था इस कारण इसकी जरूरतों के लिए घोषित बजट का इस्तेमाल नही हो सकता था। दुनियां की हर देश की सरकारें अपने गोपनीय मिशन के लिए इसी तरह फंड जुटाती हैं। अमेरिका ने तो निकारागुवा के कोंट्रा विद्राहियों की मदद के लिए हैरोइन के व्यापार को छूट देकर धन की व्यवस्था की।
एक बड़े अभिनेता का भी नाम था उछला
तकनीकी तौर पर राजीव गांधी सरकार के समय ही बोफोर्स दलाली मामले में दोष मुक्त घोषित किये जा चुके हैं। उनके नजदीकी रहे एक बड़े फिल्म अभिनेता का भी नाम इस दलाली कांड में सामने आया था लेकिन तकनीकी तौर पर यह साबित न हो पाने से एक विदेशी अखबार को उस अभिनेता द्वारा किये गये मानहानि केस में भारी जुर्माना भरना पड़ा था। आज वह अभिनेता भाजपा का नजदीक है, इसके पहले मुलायम सिंह का भी अंतरंग था। बहुत सी बातें कानूनी तौर पर साबित नही हो पातीं लेकिन विवकेशील समाज जान लेता है कि असलियत क्या थी।
राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री भी रहे थे। सामूहिक धारणा उन्हें लेकर यह बनी थी कि राजनीति और सत्ता में बहुत सारी चीजें चलती हैं लेकिन कुल मिलाकर वे एक नेक इंसान थे, विजनरी नेता थे और भारत को 21वीं सदी में ले जाने का उन्होंने सार्थक तरीके से प्रयास किया था। उनके कार्यकाल में कई ऐसे कदम उठाये गये जो मील के पत्थर के रूप में भारत की प्रगति के इतिहास में दर्ज हैं।
अंबानी को लेकर अलग हुए थे राजीव और वीपी
मजे की बात यह है कि राजीव गांधी और वीपी सिंह में मनमुटाव की शुरूआत उसी अंबानी परिवार को लेकर हुई थी जिसे लेकर आज राफेल लड़ाकू विमान सौदे के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मे ठनी हुई है। राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से लोगों के लिए जो 1 रुपया भेजा जाता है उसमें केवल 15 पैसा निचे तक पहुंच पाता है तो उनकी तड़प बोल रही थी जो सिस्टम में भ्रष्टाचार को लेकर थी। उन्होंने वीपी सिंह को इसी पर अंकुशके लिए वित्तमंत्री बनाया था। कालेधन के खिलाफ उनके आज तक के सबसे शानदार केतु अभियान को प्रधानमंत्री के नाते राजीव गांधी का भी पूरा समर्थन प्राप्त था। इसमें उद्योगपतियों के यहां ताबड़तोड़ छापेमारी हुई।
राजसी ठसक की भी कमजोरी थी एक सच
शराफत के बावजूद राजीव गांधी में कहीं न कहीं वह राजसी ठसक भी जागृत रहती थी जिसकी चर्चा आजकल मोदी करते हैं। पार्टी से अलग हटकर राजीव गांधी की एक निजी टीम थी जिसे वे सरकार में ले आये थे। इस टीम के अपने स्वार्थ थे। वीपी सिंह की छापेमारी को लेकर इस टीम ने राजीव गांधी के कान भरे। वे राजसी अहंकार के नाते ही बहकावे में आ गये। राजीव गांधी के समय एसपीजी बल का गठन किया गया था। जिसे लेकर स्वयं उन्होंने यह कानून बनाया था कि यह सुरक्षा कवर केवल प्रधानमंत्री और उनके परिवार के लोगों को ही उपलब्ध कराया जायेगा। जब वे प्रधानमंत्री नही रह गये तो यह सुरक्षा कवर हटाना लाजिमी हो गया। इसके बदले में उन्हें वैकल्पिक सुरक्षा कवर दिया गया जो ज्यादा मजबूत था। लेकिन वे प्रधानमंत्री रहें या न रहें उन्हें एसपीजी सुरक्षा बरकरार रखी जानी चाहिए थी, राजीव गांधी के लोग और तमाम कांग्रेसी शाही मानसिकता के कारण इस जिद की रट लगाये रहे थे। महान से महान आदमी में भी कुछ कमजोरियां होती हैं। इंसान के रूप में कोई इससे परे नही होता।
अंत में सर्वमान्य व्यक्तित्वों में शामिल हो गये थे राजीव
लेकिन आज राजीव गांधी के प्रति उस कटु टिप्पणी का कोई औचित्य नही था जो प्रधानमंत्री मोदी ने की। सर्वमान्य हो चुके दिवंगत नेताओं के प्रति बिना प्रसंग के ऐसी टिप्पणियां मंच से की जाना भारतीय संस्कारों को रास नही आता। खासतौर से प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्तित्व को एक-एक शब्द नापतौल कर बोलने की जरूरत महसूस करनी चाहिए।
बड़े उलटफेर के पीछे इतिहास के न्याय की भूमिका
सफेदपोशों की वीपी सिंह के प्रति वर्ग नफरत का मुख्य कारण सामाजिक न्याय के लिए उनके द्वारा की गई ठोस पहल थी। उनकी कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के अनुरूप थी। जिसे इतिहास का न्याय भी कह सकते हैं। अंततोगत्वा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री और देश के सर्वोच्च नेता के रूप में स्वीकार किया जाना इतिहास के इसी न्याय की परिणति हैं। जिसके बोध के कारण ही मोदी अति पिछड़ी जाति के होने का दम भरने से नही चूकते। वर्ण व्यवस्था से संचालित भारतीय समाज में आखिर यह एक बड़ी क्रांति से कम परिघटना नही है। जिस पर गर्व जताना उनके लिए स्वाभाविक है। बाबा साहब अंबेडकर का आभार यहां तक पहुंचने के लिए जताकर वे चीजों को और साफ कर देते हैं और भी जिन व्यक्तित्वों के आभारी हैं राजनीतिक कारणों से उनके नाम मोदी की जुबान पर अव्यक्त रहते हैं लेकिन समझने वालों के लिए वे नाम दुरूह नही हैं। विपर्यास देखिये कि आज वही सफेदपोश कुनबा प्रधानमंत्री मोदी के प्रति इतना आसक्त है कि कल तक जिस शख्सियत को अपनी वर्ग शक्ति का आलंब मानता था उसके प्रति मोदी वचन को जायज ठहराने में अपनी पूरी ऊर्जा लगा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कल जहां समुद्र था आज वहां हिमालय पर्वत माला है और जहां ऊचें शिखर थे वहां अब समुद्र का अनंत विस्तार है। इतिहास की करवट के नमूने किसने जाने है।

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