
दस्यु गाथा के कारण रहस्य रोमांच के लिए पहचानी जाने वाली चम्बल घाटी में दौर अब बदल चुका है लेकिन 92 वर्ष के पुराने दस्यु सरगना मोहर सिंह की मौत पर बीते युग की यादे चलचित्र की तरह सामने आ गयी।
पुराने जमाने में चम्बल घाटी में कहानियों का खजाना था। जिनमें लोगों की निजी जिन्दगी की त्रासदी होती थी, भयावहता थी और जबरदस्त रोमांच का पुट भी। कृश्नचन्दर का चम्बल घाटी से कुछ लेना देना नही था। लेकिन यहां के डकैतो के जीवन के नाटकीयता से भरपूर औपन्यासिक तत्वों के आकर्षण के कारण वे भी कलम उठाने चले आये और उन्होंने चम्बल की सबसे पुरानी महिला डकैत पुतली बाई पर एक बहुत ही मार्मिक उपन्यास चम्बल की चमेली रच ड़ाला। जया भादुडी के पिता तरूण भादुडी बहुत प्रसिद्ध पत्रकार थे। उनकी किताब अभिशप्त चम्बल मोहर सिंह के पहले की पीढी के डकैतो पर आधारित थी। मदर इंड़िया और मुझे जीने दो जैसी कालजयी फिल्में भी अपने समय के दस्यु नायकों की कहानी से प्रेरित होकर बनायी गयी थी।
90 के दशक के पहले डकैत अपने को बागी कहते थे और स्थानीय जनता भी उनके लिए इस सम्बोधन का समर्थन करती थी। अजीब विरोधाभास था। डकैतो को अपराधी न मानकर जनता उन्हे अमीरों को लूटकर गरीबो की भलाई करने वाले मसीहा के रूप में पूजती थी तो उनसे लोहा लेने वाले बहादुर पुलिस अफसरों के लिए भी उसके मन में प्रशंसा का भाव रहता था।
दस्यु समस्या के मानवीय पहलुओं के कारण ही पुलिस की बजाय उनके हृदय परिवर्तन के विकल्प को समर्थन मिला और सन्त बिनोवा भावे व लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरूषों ने इसके लिए पहल करने में संकोच नहीं किया। बाद में दस्यु समर्पण धन्धा बन गया जिसमें बदनाम नेताओं और पुलिस अधिकारियों ने कही अपनी ब्रान्डिंग तो कही आर्थिक लाभ के लिए हाथ बटाया। अन्दर खाने की बात तो यह है कि बाद के समर्पणों में डकैतो के चेहरे और कहानियां विदेशी मीडिया को बेची गयी ताकि वास्तविक तस्वीर को तोड़-मरोड़कर देश की छवि बिगाड़ने के उनके मंसूबे पूरे हो सके। फूलन देवी के समर्पण में फ्रान्स की एक टेलीविजन कंपनी से इसके आयोजको की सौदेबाजी इसका उदाहरण है। इन पंक्तियों के लेखक को इस खेल को उजागर करने की वजह से पुलिस का कोपभाजन बनकर मुकदमें झेलने पडे। भिन्ड में ऊमरी और नयागांव आदि थाना ़क्षेत्रों में पुलिस ने आज की एस ई जेड की तर्ज पर पीस जोन बनाये थें जहां डकैत गिरोह जालौन और इटावा से अपहरत करके लोगो को रखते थे और भिन्ड पुलिस उनकी सुरक्षा की गारंटी करती थी। 1982 में भिन्ड पुलिस की इस हरकत के कारण नुमाइश चैकी में दोनो जिलो की पुलिस के बीच जमकर मारपीट हो गयी थी।
बहरहाल जमाना बदला तो दस्यु समस्या का प्रचण्ड रूप भूली-बिसरी बात बन गयी। चम्बल की वर्तमान पीढी को उस दौर का एहसास अब शायद ही हो। लोग मोहर सिंह को बडी दाढी कहते थे और माधौ सिंह को छोटी दाढी। माधौ सिंह बहुत पहले गुजर चुके थे। मोहर सिंह ने लम्बी उम्र पाई जिसके कारण उनको लेकर चर्चाओं को लोग कब के भुला चुके थे। अब जब उनकी मौत हुयी तो वर्तमान पीढी को बताया जा रहा है कि चम्बल की एक हस्ती चली गयी है जिसके कारण यहां की पुलिस और जनजीवन थर्राया रहता था।






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