माधौगढ- बेसिक योगी सरकार ने नया गौ अध्यादेश लेकर अपने कड़े मंसूबे जाहिर कर दिए हों लेकिन धरातल पर कई फ़र्क नहीं पड़ा। गौवंश सड़कों पर आवारा होकर मरणासन्न हो,चाहे सरकारी गौशाला में इनकी कोई सुध लेने वाला न हो और यह तड़प-तड़प कर अपने प्राण छोड़ दें,कानून ऐसे जिम्मेदारों को सज़ा नहीं दे पाता। 2 मई से माधौगढ के नगर पंचायत के अधीन गौशाला में कई गौवंश मरणासन्न स्थिति में थे,विरोध हुआ,गाय में आस्था रखने वाली जनता आक्रोशित हुई लेकिन अभी तक प्रभावी न जांच हुई न कोई कार्यवाही। भाजपा की सरकार होने के बाद भी गौवंशों की इन हालत के दोषी चेहरे पर मुस्कान लिए घूम रहे हैं। जबकि डिकौली स्थित गौशाला में शासन ने अभी तक 12 लाख के लगभग भूसा और चारा के लिये धन आवंटित किया। जिसके टेंडरों में जमकर गोलमाल हुआ। हर महीने एक ही व्यक्ति के नाम टेंडर हुआ,भूसा का 725 रुपये कुंतल और करब 400 रुपया कुंतल के हिसाब से टेंडर हुआ। जिसमें चैयरमेन, ईओ और लिपिक सभी शामिल हैं। पूरी साल ग्रामीण क्षेत्र में इतना मंहगा भूसा कहीं नहीं मिलता और करब की कीमत तो न के बराबर होती है,फिर भी टेंडरों में खूब भृष्टाचार का खेल हुआ। उसके बाद भी गौवंश भूंख और बीमारी से मरणासन्न बने रहे बल्कि कई की मौत हो गयी। जिन्हें गुपचुप निपटा दिया गया। उसके बाद भी चैयरमेन राजकिशोर सहित सभी अपने आप को ईमानदार बता कर जनता की नजर में पाक-साफ बने रहना चाहते हैं। जबकि गौशाला की पारदर्शी तरीके से जांच हो जाये तो छेद ही छेद निकलेंगे।

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