कानपुर में गत दिनों कुख्यात अपराधी विकास दुबे के घर दविश के लिए पहुंचे पुलिस दल पर हमले में 8 पुलिस कर्मियों के शहीद होने का मामला राज्य सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है. इसकी जांच जैसे जैसे आगे बढ़ रही है इसकी कई परतें खुलती जा रहीं हैँ. विकास दुबे के खिलाफ 60 से अधिक संगीन मामले दर्ज थे. उसने 2001में थाने के अंदर पुलिस के सामने राज्य मन्त्री का दर्जा प्राप्त नेता की हत्या करके खूंरेजी का नया इतिहास रचा था. फिर भी उसे सजा नहीं दिलाई जा सकी थी क्योंकि विवेचनाधिकारी सहित उसके खिलाफ बयान दर्ज कराने वाले सारे गवाह अदालत के सामने मुकर गए थे. इतना दुर्दांत होने के वाबजूद वह अपने थाने तक के टॉप टेन अपराधियों की लिस्ट में नहीं आया था तो इसके पीछे सरकार की सोच कहीं न कहीं जिम्मेदार है जिसकी वजह से सवर्ण बाहुबलियों को पुलिस अपराधी की बजाय पराक्रमी की निगाह से देख रही है इसलिए अपराधियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस का अभियान कुछ समय से जातिगत और साम्प्रदायिक दृष्टिकोण तक सिमट गया था. इस आधे अधूरे अभियान में कानपुर की घटना से सबक ले कर सुधार की जरूरत है.
दूसरी ओर विकास दुबे के लिए मुखबिरी में निलंबित किये गए थानाध्यक्ष विनय तिवारी का मामला भी गौरतलब है. सरकार ने पुलिस की नौकरी में मालामाल हुए अधिकारियों और कर्मचारियों को चिन्हित कर बर्खास्त करने का कागजी अभियान चलाया था जो वास्तविक होता to विनय तिवारी भी नप गया होता.  विनय तिवारी विकास का इतना बड़ा खैर ख़्वाह था कि उसने शहीद सी ओ द्वारा उसके खिलाफ तत्कालीन एस एस पी को भेजे गए पत्र की जानकारी उसे लीक कर दीं थी. इसीलिये  सी ओ महेश मिश्रा इतनी बर्बरता पूर्वक शहीद किये गए. गोली मारने के बाद unke शव का पैर काटे जाने से उनके प्रति बदले की इंतहा भावना उजागर होती है. पैसे के लिए इतना नीचे तक गिर जाने वाला विनय तिवारी इतना मालामाल होगा कि वह तो पहली नजर में ही पकड़ में आ जाना चाहिए था.
  लोकतंत्र में सरकारों को रुल ऑफ़ लॉ के मुताबिक़ काम करना चाहिए था इसलिए सयानों ने बहुत टोकाटाकी की थी जब मुख्यमंत्री से ले कर तत्कालीन डी जी पी तक अपराधियों को सीधे ठोंक देने का फरमान अपनी पुलिस को जारी कर रहे थे. इसी मानसिकता में रची बसी पुलिस ने  बिना अदालती आदेश प्राप्त किये जब विकास दुबे का मकान गिरवाया और उसका सारा कीमती सामान तहस नहस कर दिया तो एक नई मुसीबत खड़ी हो गयी. पुलिस के अफसरों ने प्रोफेशनल ट्रैक से अलग हट कर काम करने के चलते एक और नादानी की कि इसका वीडियो बनने दिया और उसे वायरल होने दिया. इससे  वर्ग विशेष में आक्रोश भड़क गया जो कि सत्तारूढ़ दल का वोट बैंक है. अब इस  राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को कुछ न कुछ करना होगा.
बहरहाल सुनियोजित ढंग से 8 पुलिस कर्मियों की हत्या करके विकास दुबे ने राज्य सत्ता को चुनौती देने का काम किया है जो सामान्य अपराध से अलग है.मामले की इस प्रकृति की गंभीरता को सरकार और पुलिस के साथ साथ नागरिकों को भी गंभीरता से समझना पडेगा. संकीर्ण भावनाओं के लिए राज्य के इक़बाल का महत्व भुलाना जंगल राज को न्यौतना है जो सबसे ज्यादा आम नागरिकों के लिए भारी होगा.

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