
अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण हिन्दू विजय दर्प का प्रतीक है। इसके अनुरूप मंदिर निर्माण के शुभारम्भ को लेकर हिन्दुओं में उत्साह और रोमांच की बाढ़ नजर आ रही है। हालांकि इस संदर्भ में यह बात स्मरण करनी होगी कि 09 नवम्बर 2019 को जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद का निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में सुनाया था तभी से सरकार और मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़े जिम्मेदारों ने यह ख्याल रखा कि इस कदम को दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने के रूप में पेश न होने दिया जाये और यह सतर्कता अभी तक बनी हुई है जो उचित भी है।
इतिहास के लम्बे दौर में हिन्दुओं ने वाकई में दमन झेला था सो बदली परिस्थितियों में यह स्वाभाविक है कि वे इसकी पूरी तरह भरपाई कर लेने को उतावले नजर आने लगते हैं। इसलिए राम मंदिर को अभूतपूर्व और निराला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। मंदिर निर्माण का मुहुर्त आते-आते इसकी विशालता और बढ़ाई जाना इसी का नतीजा है। पहले डिजाइन में यह मंदिर 128 फिट ऊंचा दो मंजिल का बनना था। अब मंदिर 161 फिट ऊंचा तिमंजिला होगा जिसकी चैड़ाई 235 फिट और लंबाई 360 फिट रहेगी। मंदिर के नये डिजाइन में दो से बढ़ाकर पांच शिखर तय किये गये हैं। यह विश्व में पहला मंदिर होगा जिसमें पांच शिखर रहेंगे। इसी कारण मंदिर के क्षेत्रफल का विस्तार भी 69 एकड़ से 120 एकड़ कर दिया गया है। मंदिर के प्रमुख वास्तुकार निखिल सोमपुरा के अनुसार इसका निर्माण लगभग ढ़ाई वर्षो में पूरा हो जायेगा और इसकी लागत 100 करोड़ रूपये से अधिक होगी।
मंदिर के भूमि पूजन का विधि विधान 03 अगस्त से शुरू हो जायेगा और जो 05 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 40 किलो की चांदी की शिला रखने के साथ पूरा होगा। अयोध्या के संतों का पहले से जोर था कि मंदिर के लिए भूमि पूजन स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करें। अभी तक प्रधानमंत्री अयोध्या नहीं आये हैं जिसे लेकर तरह-तरह की चर्चायें चलती रही हैं। इनका पटाक्षेप करने के लिए राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने उनसे कह दिया था कि वर्चुअल शिलान्यास मंजूर नहीं होगा। कोरोना काल के बावजूद आपको यानि मोदी जी को शिलान्यास के लिए स्वयं अयोध्या में उपस्थित होने की स्वीकृति देनी पड़ेगी। यह आग्रह इतना प्रबल था कि प्रधानमंत्री को अंततोगत्वा अयोध्या आने की अपनी डेट फाइनल करनी ही पड़ी।
जायज है कि इसके बावजूद भूमि पूजन समारोह एहतियाती उपायों से बंधा रहेगा। केवल 300 अतिथि समारोह के लिए आमंत्रित किये जा रहे हैं। यद्यपि पूरा देश इस कार्यक्रम को देख सके सो इसके टीवी चैनलों पर सीधे प्रसारण की व्यवस्था की जा रही है। अतिथियों की सीमा के चलते शंकराचार्यो को भी इसमें नहीं बुलाया जा सका है। शंकराचार्यो से दूरी रखने की एक और वजह है। काग्रेस समर्थक माने जाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने 05 अगस्त के मुहुर्त को अशुभ बता दिया है। नतीजतन अगर उन्हें बुलाते तो विवाद था और न बुलाते तो विवाद। ज्योतिषी दृष्टिकोण से कई और विद्वानों ने भी 05 अगस्त के मुहुर्त पर संदेह जताया है लेकिन जिस तरह से मंदिर के लिए पहला शिलान्यास 19 नवम्बर 1989 को विश्व हिन्दू परिषद ने कराया था और बाद में 2019 में 30 वर्ष बाद 19 नवम्बर को ही इसके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जिसे संयोग मात्र नहीं माना जा रहा है वैसा ही कुछ गणित 05 अगस्त को लेकर है। 05 अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने की सफलता प्राप्त की गई थी। अतः यह तिथि शुभांक मानकर इसी दिन अब मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के लिए तय की गई है। बहरहाल मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे लालकृष्ण आडवाणी, डा0 मुरली मनोहर जोशी के साथ-साथ उमा भारती, विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा को आमंत्रित करने में कोई कोताही नहीं होने दी गई है।
भारत में रहने वाले किसी भी धर्म के लोग हो उनके पूर्वज एक हैं और उनकी सांस्कृतिक जड़ें समान हैं इस भावना के अनुरूप जिम्मेदार बार-बार इस बात पर भी बल दे रहे हैं कि राम जन्म भूमि मंदिर कोई हिन्दुओं की विजय का स्मारक न बने बल्कि समूचे देश की सामूहिक विरासत के बतौर राष्ट्र मंदिर के रूप में नवाजा जाये। यह बड़प्पन मर्यादा पुरूषोत्तम राम के मंदिर की गरिमा के अनुरूप है। मनुष्य के अंदर उत्सव धर्मिता भी एक मौलिक प्रवृत्ति है जिसके आलम्बन से लोगों को महान उद्देश्यों के लिए प्रेरित किया जा सकता है। अयोध्या के राम मंदिर की प्रस्तावित भव्यता को इसी संदर्भ में समझने की जरूरत है। भव्य मंदिर जहां श्रेष्ठता की भावना जगायेगा वहीं आत्म गौरव का विकास समाज में सकारात्मकता को भी बढ़ावा देगा। भव्यता के माध्यम से लोग धार्मिकता की ओर अधिक प्रबलता के साथ आकर्षित होंगे पर धार्मिकता के वास्तविक अर्थ को नहीं बिसराया जाना चाहिए। धर्म की सार्थकता नैतिक जीवन में आस्था पर टिकी रहती है जिसके बिना हमारा राष्ट्रीय चरित्र अभी बहुत बेदम नजर आ रहा है। राम जन्म भूमि मंदिर के माध्यम से जो धार्मिक पुनरूत्थान होने जा रहा है उसके द्वारा राष्ट्रीय चरित्र के उन्नयन में कितनी मदद मिलती है यह देखने वाली बात है। किसी भी सिद्धांत की महत्ता उसके अनुसरण से नापी जाती है। धार्मिक मामला इसका अपवाद नहीं है इसलिए धर्म के कर्णधारों को देखना होगा कि वे लोगों को मंदिर में लाकर सदाचरण के लिए कहां तक प्रेरित कर पाते हैं। अंधविश्वास, वर्गीय भेदभाव और स्वार्थपूर्ण आडम्बरों व कर्मकाण्डों से मटमैली होती हमारी धर्म ध्वजा को संवारने की दृष्टि से राम मंदिर सबसे बड़ा केन्द्र बनेगा यह उम्मीद की जानी चाहिए।






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