घुसपैठ के हौव्वे ने एसआईआर की रिपोर्ट के बाद दम तोड़ा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वाधीनता दिवस के दिन लाल किले की प्राचीर से दिये गये 100 मिनट से अधिक लंबे भाषण में घुसपैठियों का जो मुददा खड़ा किया गया था उसकी हवा बिहार में मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण अभियान के सामने आने के बाद पूरी तरह निकल गयी है। 24 जून 2025 को ड्राफ्ट सूची में शामिल 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 68.60 लाख मतदाता हटा दिये गये हैं जबकि 21.53 लाख नये मतदाताओं को जोड़ा गया है। प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक ने हल्ला मचाया था कि बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार जैसे देशों के लोग हमारे देश में मतदाता बनकर लोकतंत्र को प्रभावित कर रहे हैं लेकिन सीमावर्ती राज्य होने के बावजूद बिहार में हुए एसआईआर से सामने आये तथ्यों ने इस धारणा को पुष्ट नही किया है। चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि मसौदा चरण में जिन 65 लाख नामों को हटाया गया था उनमें 22 लाख वे थे जिनकी मृत्यु हो गयी थी। 36 लाख मतदाताओं को स्थायी रूप से विस्थापित होने या अनुपस्थित मिलने के कारण सूची से पृथक किया गया था। 7 लाख नाम डुप्लीकेसी के कारण डिलीट किये गये थे। अंतिम सूची में 3.66 लाख मतदाताओं के नाम और खत्म किये गये जिनका विवरण चुनाव आयोग ने इस प्रकार दिया- 2 लाख से ज्यादा विस्थापन के कारण हटाये गये, लगभग 60 हजार नाम उनकी मृत्यु की वजह से समाप्त किये गये व 80 हजार नामों को डुप्लीकेसी मिलने पर डिलीट किया गया। प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार इण्डियन एक्सप्रेस के संवाददाता ने पटना स्थित मुख्य चुनाव अधिकारी से विस्तृत ब्यौरे को जानने के लिए संपर्क किया था लेकिन उन्होंने संवाददाता का सहयोग नही किया। बाद में चुनाव आयोग के ही अन्य विश्वसनीय सूत्रों से नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस संवाददाता ने जो आंकड़े जुटाये उनके आधार पर उसने अपने अखबार में लिखा कि 99 प्रतिशत नाम ऊपर वर्णित कारणों से हटाये गये थे। घुसपैठिया होने के आधार पर हटाये गये नामों की संख्या इतनी नगण्य थी कि उनका आंकड़ा दर्ज नही हो सका। इन तथ्यों की रोशनी में प्रधानमंत्री मोदी की तिल का ताड़ बनाने की कोशिश पर हैरत होती है। वे यह भी नही सोचते कि वे किस पद पर विराजमान हैं, जहां सरेआम अविश्वसनीय बातें कहने से उनकी नही पूरे देश की बदनामी होती है। प्रधानमंत्री इतनी बार ऐसी चीजों की पुनरावृत्ति कर चुके हैं कि लोगों ने अब उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया है। इसलिए शुरूआत में महफिल लूट ले जाने वाले प्रधानमंत्री का हर स्वांग फुस्स साबित हो रहा है।


असल मुददों को नकारने की हिमाकत अब पड़ने लगी भारी
प्रधानमंत्री लोगों के अनुभूत सत्य को मुददा बनाये यह उनकी जिम्मेदारी है और पहले नेता इस बात को अच्छी तरह महसूस भी करते थे इसलिए ऐसे ही मुददों का जिक्र छेड़कर उनके निदान की योजनाएं अपने सार्वजनिक वक्तव्य में प्रस्तुत करते थे तांकि लोगों को सांत्वना मिल सके और उनमें नई आशा का संचार हो सके। राजीव गांधी ने अपने समय सदिच्छा पूर्वक जो बात कही थी जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिपक्षी दल को नीचा दिखाने का हथियार बना लिया है उसका उल्लेख करना यहां प्रासंगिक होगा। राजीव गांधी ने कहा था कि मुझे मालूम है कि केंद्र से लोगों की भलाई के लिए जो एक रुपये भेजा जाता है उसमें से मात्र 15 पैसे लोगों तक पहुंच पाते हैं। जन कल्याणकारी योजनाओं में उस समय जो घपलेबाजी हो रही थी आज की तरह राजीव गांधी उसे मंच से धृष्टतापूर्वक झुठलाने की कला प्रदर्शित कर सकते थे लेकिन ऐसा करना उन्हें उचित नही लगा होगा क्योंकि वह दौर था लोकतंत्र लोकलाज से चलता है की कहावत का हर जगह हवाला दिये जाने का। लोगों को कबूलनामा किस्म का राजीव गांधी का भाषण सुनकर उस समय बड़ी शांति महसूस होती थी कि हमारा नेता सरकारी तंत्र की खराब नीयत से नावाकिफ नही है। उसके मन में भी सरकारी तंत्र की धांधली को लेकर दर्द है इसलिए एक दिन वह सब कुछ ठीक कर सकेगा। पर आज क्या स्थिति है। मोदी कहते हैं कि राजीव गांधी के समय बेईमानी हो रही  थी लेकिन हमने तो लोगों के खाते में सीधे सहायता भेजने का प्रबंध करके पूरा एक रुपया लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दी है क्योंकि हमारी नीयत गलत नही है। हमें राजीव गांधी की सरकार की तरह कमीशन थोड़े ही बटवाना है।


ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के आइने को देखने की नही फुर्सत
यह सड़ी हुई वास्तविकता पर पर्दा डालने के लिए कुतर्क देने जैसी हरकत है। राजीव गांधी के समय टेक्नोलॉजी ऐसी नही थी कि लाभार्थी के सीधे खाते में सहायता भेजने की व्यवस्था हो सके। लेकिन कल्याणकारी योजनाओं में घपला भ्रष्टाचार का एक बहुत छोटा अंश है। पर आज भी हर काम के लिए लोग सरकारी तंत्र में बैठे लोगों को चढ़ौती चढ़ाने के लिए मजबूर हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि भारत की स्थिति भ्रष्टाचार के मामले में आज भी कितनी शर्मनाक है। माना कि एक दिन में इसमें पूर्ण सुधार नही हो सकता लेकिन लोगों को यह तो पता चले कि हमारी सरकार में तंत्र की इस लूट-खसोट को लेकर बहुत वेदना है और वह ऐसा प्रयास कर रही है कि लोगों को इस लूट-खसोट से मुक्ति दिला सके। लेकिन प्रधानमंत्री जब यह कहते हैं कि अब देश में भ्रष्टाचार बचा ही नही है तो लोगों को बहुत निराशा होती है। इसका अर्थ तो यह है कि वर्तमान सरकार ने भ्रष्टाचार को व्यवस्था के एक पहलू के बतौर मान्य कर लिया है जिसकी वजह से उसके एजेंडे में इस पर अंकुश लगाने के काम को कोई स्थान नही है। निश्चित रूप से वस्तुस्थिति को नकारने की यह जुर्रत पूरी तरह धींगा मुश्ती का परिचायक है।


चैतन्य लोगों को कुरेदने वाले मुददो से किनाराकशी
भ्रष्टाचार, सार्वजनिक जीवन में शील की होती कमी, गाली-गलौज की बढ़ती संस्कृति, बेरोजगारी, अभाव ग्रस्तता में वृद्धि, शासन का संचालन करने वाली संस्थाओं का क्षरण यह ऐसे मुददे हैं जिनका प्रभावी निदान करने की अपेक्षा लोग अपनी सरकार से करते हैं लेकिन शायद इन मामलो को ऐड्रेस करने में वर्तमान सरकार की कोई रुचि नही है। इसलिए वे उन मुददों को गढ़ते रहते हैं जिनका वास्तविक जीवन में बहुत महत्व नही है। सत्ता में बैठे लोग चाहते हैं कि लोग इन्ही गढ़े हुए या कृत्रिम मुददों में उलझकर रह जायें तांकि उसे जबावदेही के लिए मजबूर न होना पड़े। ऐसा नही है कि घुसपैठ की समस्या देश में न हो। भारत में तो क्या अमेरिका तक में अवैध रूप से घुस आये लोगों को बाहर निकालना मुददा बना हुआ है। दुनियां के हर देश में कमोवेश यह समस्या है। लेकिन हर देश की स्थितियां अलग-अलग हैं। अमेरिका में भारत जैसे देशों के टैक्नोक्रेट वहां के युवाओं के रोजगार के लिए समस्या बन रहे थे इसलिए इस मुददे ने जोर पकड़ा। यहां भी विदेशियों के कारण लोगों के अधिकार और हित प्रभावित हो रहे होगें लेकिन प्रधानमंत्री ने तो इसे लाल किले से बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बता दिया। उन्होंने तो कह डाला कि घुसपैठिये हमारे यहां के लोगों की जमीने हड़प रहे हैं। युवाओं की आजीविका छीन रहे हैं। बहन-बेटियों से सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर कहीं तो ऐसा होता नही दिख रहा। किस जगह सामूहिक दुष्कर्म के मामले में घुसपैठियों का नाम आया। किस जगह की यह जानकारी आयी कि वहां घुसपैठियों ने मूल लोगों की जमीनों पर अपना झंडा गाड़कर कब्जा जमा लिया हो। कहां यह शिकायत की गयी कि तमाम नौकरियां या धंधे घुसपैठियों ने हथिया लिये हों। इक्का-दुक्का ऐसी घटनाएं हो रही होगीं लेकिन उसके लिए प्रधानमंत्री स्वाधीनता दिवस जैसे बड़े अवसर का अपना संबोधन समर्पित कर दें इसका कोई औचित्य नही है। इसके लिए प्रशासन की जो रुटीन चौकसी और कार्रवाई है वह पर्याप्त है। पश्चिम बंगाल, असम और बिहार जैसे राज्यों में हो सकता है कि ज्यादा चौकसी की जरूरत पैदा हो गयी हो लेकिन यह देश व्यापी स्तर की सबसे बड़ी समस्या है इससे तो कोई सहमत नही हो सकता।


हर चुनाव के लिए नई बोतल, नया जिन्न
पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर मौके कहीं न कहीं होने वाले चुनाव के दृष्टिगत बात का बतंगड़ बनाने की आदत पड़ चुकी है। इस स्वाधीनता दिवस पर उनके निशाने पर बिहार का आने वाला विधान सभा चुनाव था इसलिए उन्होंने सारी प्रमुख समस्याओं को भूलकर घुसपैठियों को देश के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित करने में अपनी ऊर्जा झौंक दी जबकि अब तो लोग उनकी इन आदतों से चिर परिचित हो चुके हैं। बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव भी सन्निकट हैं। घुसपैठियों का यह जिन्न तब तक मोदी जी को उत्तेजित करता रहेगा जब तक कि इन राज्यों के चुनाव से फारिग नही हो जाते। इसके बाद उनकी बोतलों में नये-नये जिन्न कैद हैं। जहां जिस जिन्न को फिट करने की आवश्यकता महसूस हो वहां वे उस नये जिन्न को बाहर निकालकर मैदान में उतार देगें। लेकिन प्रधानमंत्री की परेशानी यह है कि अब उनके समर्थकों तक में उनकी चिंताएं, उनकी ललकार, उनके आवाहन कोई खास जोश पैदा नही कर पाते। उनके तरकश का हर तीर अब कुंद साबित हो रहा है। उन्होंने अपनी मां को गाली कथित तौर पर गाली दिये जाने को मुददा बनाया लेकिन उनकी अपेक्षा के अनुरूप कहीं जनता सड़कों पर नही उतरी। जीएसटी में सुधार को दीपावली का सबसे बड़ा गिफ्ट बताकर उन्होंने चाहा कि लोग खुशी से झूमते दिखाई दें पर लोगों में कोई उत्साह पैदा नही हुआ। सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी से उन्होंने राष्ट्रवादी भावनाओं के तूफान का प्रायोजन किया लेकिन यह कदम भी फ्लॉप शो साबित होकर रह गया। आजकल यूपी पुलिस जिहादियों को पकड़ने का पराक्रम दिखा रही है जिसकी प्रस्तुति देश को अस्थिर करने के षड़यंत्र के रूप में होती है पर कोई विश्वास नही कर रहा है कि दिमागी रूप से बीमार चंद पिददी लोग भारत जैसे विशाल देश को अस्थिर करने की कोई गंभीर साजिश कर सकते हैं। लगता है कि मोदी जी को कल तक जो सिद्धि प्राप्त थी उसे वे अपनी हरकतों से गंवा बैठे हैं इसलिए उनका हर मंत्र खाली जा रहा है। बिहार में चुनाव को घुसपैठियों के दखल की समस्या तक केंद्रित करके मोदी जी ने जो गुल खिलाना चाहा था एसआईआर की रिपोर्ट से उस पर पाला पड़ गया है। 

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