उत्तर प्रदेश की राजनीति एक प्राचीन महाकाव्य की तरह है—जहां सत्ता की जंग कभी खत्म नहीं होती, महत्वाकांक्षाएं छिपी साजिशों में पनपती हैं, और जातिगत असुरक्षाएं बार-बार सिर उठाती हैं। यह कोई नई कहानी नहीं; यह सदियों पुराना रोग है जो कांग्रेस के सुनहरे दिनों से लेकर योगी युग तक खुद को दोहराता रहा है। बंद होटलों की गुप्त बैठकों से लेकर सोशल मीडिया के खुले युद्धक्षेत्र तक, समानांतर सत्ता का यह खेल महत्वाकांक्षा, विश्वासघात और जाति की आग से जलता रहा है। आइए, इस रोमांचक गाथा को फिर से जीएं—जहां हर मोड़ पर ट्विस्ट है, हर बैठक एक नई साजिश, और इतिहास खुद को नए रंग में रंगता है।
अध्याय 1: कांग्रेस का सिंहासन और पुत्तू अवस्थी का विद्रोह

1980 के दशक का लखनऊ, जहां कांग्रेस का परचम लहराता था और एनडी तिवारी जैसे कद्दावर नेता सत्ता के शिखर पर। लेकिन अंदर की आग बुझने का नाम नहीं ले रही। बाराबंकी के पुत्तू अवस्थी, महत्वाकांक्षा से भरे एक युवा विधायक, ने अवध क्लार्क होटल में रात्रिभोज का जाल बिछाया। यह कोई साधारण भोज नहीं था—यह था हाईकमान को सीधी चुनौती! दर्जनों विधायक जुटे, शराब की चुस्कियों के बीच सत्ता की कमियां गिनाईं गईं। तिवारी का तख्ता हिल गया। पुत्तू की आंखों में जीत की चमक, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी।
अध्याय 2: त्याग का नाटक – पुत्तू से राजनाथ तक का सफर
कहानी में अप्रत्याशित मोड़। पुत्तू कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। 2000 के दशक में राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने, लेकिन संवैधानिक संकट: छह महीने में विधानसभा सदस्य बनना जरूरी। पुत्तू ने अपनी प्यारी हैदरगढ़ सीट त्याग दी—”ले लीजिए, राजनाथ जी!” उपचुनाव में राजनाथ की भारी जीत, जनता का सीधा आशीर्वाद। क्या यह सच्चा त्याग था या भविष्य की साजिश? राजनीति में हर बलिदान एक रहस्य छिपाए होता है।
अध्याय 3: भाजपा के गढ़ में विष – कल्याण सिंह का दर्दनाक पतन

1991, भाजपा सत्ता में, कल्याण सिंह मुख्यमंत्री। अनुशासन की दुहाई देने वाली पार्टी में भी रोग फूट पड़ा। राम प्रकाश त्रिपाठी ने बख्शीतालाब में ब्राह्मण विधायकों की गुप्त बैठक बुलाई—”सोशल इंजीनियरिंग ब्राह्मण-विरोधी!” जाति का बारूद बिछा, साजिशें चलीं, कल्याण हटे, भाजपा सत्ता से बेदखल। अगर सरकार पांच साल चलती, तो राम मंदिर का रास्ता पहले साफ होता, भाजपा का साम्राज्य फैलता। लेकिन विश्वासघात ने सब कुछ छीन लिया। दूसरी बार कल्याण लौटे, तो हमीरपुर कांड का विष इतना घातक कि पार्टी छोड़नी पड़ी। भाजपा चौथे नंबर पर, सालों का वनवास।
अध्याय 4: योगी युग की नई छायाएं – जातियों की जुटान और बढ़ता तनाव

वर्तमान का क्लाइमैक्स: योगी आदित्यनाथ का शासन, जहां कानून का राज है, लेकिन समानांतर सत्ता का रोग फिर जागा। पहले ठाकुर विधायकों की जुटान अवध क्लार्क होटल में—मुख्यमंत्री को मजबूत दिखाने का संदेश। फिर लोधी, कुर्मी। लेकिन दिसंबर 2025 में कुशीनगर विधायक पीएन पाठक के घर ब्राह्मण विधायकों का सहभोज—40-50 से अधिक जुटे, जिसमें योगी के करीबी जैसे शलभमणि त्रिपाठी भी। पार्टी ने इसे अनौपचारिक बताया, लेकिन सोशल मीडिया पर तूफान: “ब्राह्मणों की आवाज दबी जा रही!” नई भाजपा अध्यक्ष पंकज चौधरी ने चेतावनी दी, आलाकमान नाराज। ठाकुरों की पिछली बैठकों पर चुप्पी, अब ब्राह्मणों पर सख्ती—क्या यह दोहरा मापदंड?

असल शिकायतें गहरी: नौकरशाही का वर्चस्व, भ्रष्टाचार के आरोपों पर कोई सुनवाई नहीं। ठाकुर विधायक भी नाराज, ब्राह्मणों का असंतोष उभरा। लेकिन सोशल मीडिया ने इसे जातीय युद्ध बना दिया। योगी समझते हैं ब्राह्मणों की ताकत—मंदिर निर्माण, धार्मिक आयोजन उनकी प्राथमिकता। फिर भी सवाल: बाहुबलियों को संरक्षण क्यों? आरक्षण में कथित धांधली क्यों?
अध्याय 5: विडंबनाओं का चरम और अनिश्चित भविष्य
सबसे बड़ा रहस्य: वंचितों का विश्वासघात। ब्राह्मण समाज का ऐतिहासिक दायित्व—अन्याय के खिलाफ खड़ा होना। अगर वे सच्चे पथप्रदर्शक, तो योगी सरकार की एकांगी नीतियों पर अंकुश लगाएं।
उत्तर प्रदेश फिर चौराहे पर। जाति की शक्ति नहीं, जनहित का सवाल। क्या सत्ता लोगों की ओर लौटेगी, या इतिहास की यह गाथा फिर दोहराई जाएगी? 2027 दूर नहीं—नई बैठकों का सिलसिला जारी, नई साजिशें बन रही हैं। रोमांच चरम पर, लेकिन अंत कौन लिखेगा? समय की गोद में छिपा यह रहस्य अभी खुलना बाकी है |


Leave a comment