उरई.उत्तर प्रदेश साहित्य सभा जालौन इकाई द्वारा गीत ऋषि और वरिष्ठ पत्रकार विनोद गौतम के जन्मदिन पर एक काव्य गोष्ठी एवम मुशायरे का आयोजन सभा के अध्यक्ष अनुज भदौरिया के आवास पर किया गया जिसमें गौतम जी को जन्मदिन के मौके पर सम्मानित भी किया गया.कार्यक्रम की अध्यक्षता जनपद के वरिष्ठ कवि यज्ञदत्त त्रिपाठी ने की.मुख्य अतिथि जिला प्रोबेशन अधिकारी अमरेंद्र पोतस्यायन रहे.कार्यक्रम का संचालन साहित्यसभा के ज़िला संयोजक पहचान के अध्यक्ष शफीकुर्रहमान कशफ़ी ने किया.
कार्यक्रम की शरुआत अनुज भदौरिया की सरस्वती वंदना और अख्तर जलील की नाते पाक से हुई.फिर शुरू हुआ गीत,गज़लों मुक्तकों का दौर. सिद्धार्थ त्रिपाठी ने पढ़ा
हम आये नहीं हैं बुलाये गए हैं,रिश्ते पुराने निभाए गए हैं,इसके बाद ब्रह्मप्रकाश अवस्थी ने पढ़ा -एक अंजुली स्नेह पाना चाहता हूं , मैं तुम्हारे दर पे आना चाहता हूं , प्रियंका शर्मा ने पढ़ा विटप की ओट से देखते रघुवर सिया, कौन है भू पर सुता ये देखते रघुवर. फिर इनके बाद शिरोमणि सोनी ने पढ़ा इक कुमुदनी पे बैठा भ्रमर सोचता,मैं हूँ पागल प्रिय प्रेमिका खोजता,राघवेन्द्र कनकने ने सुनाया जितने लोगों से पूछेंगे उतने नुस्खे बतलाएंगे,कुछ वक्त तो दो इन ज़ख्मों को ये खुद ब खुद भर जाएंगे,शिवा दीक्षित ने पढ़ा यह मंगल दीप दीवाली है दीपों से सज रही थाली है,देखो आ गए प्रभु राम जो अयोध्या के वनमाली है,प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढ़ा-सदा चेहरे पे खुशियों से भरी मुस्कान हो हरदम,मिले खुशियां ज़माने की सफ़र आसान हो हर दम,हास्य के शायर असरार मुक़री ने पढ़ा -इश्क़ के खेल भी होते हैं रंगीले कितने,देखते देखते हम हो गए पीले कितने,शायर अख्तर जलील ने पढ़ा-जिन चिराग़ों ने बुज़ुर्गों की बात मानी है,
उन चिराग़ों पर हवाओं की मिहरबानी है,
इंदु विवेक उदैनिया ने पढ़ा -बाज़ी भी हमारी है सुल्तान हमारा है,ये व्यूह है शतरंजी जो हमने पसारा है,अनुज भदौरिया ने पढा-है बहुत भ्रामक हमारा मन,कह गए है क्या तुम्हारे दो नयन,कवियत्री शिखा गर्ग ने पढ़ा-तलाशता है क्या मनुज ये युद्ध है क्यों किस लिए,हज़ारों लोग मारकर अगर जिये तो किस लिए-उस्ताद शायर अब्दुल मलिक अब्बासी ने पढ़ा-आंसू जो बहें तो कुछ भी न हो पी लूं तो जिगर कट जाए,या रब ये शरारत दिल की न हो अश्क़ों में तो ये तेज़ाब न था,मुख्य अतिथि अमरेंद्र जी ने पढ़ा,जिंदगी की साज पर, आवाज खो जाती कहीं,
चल पड़े जब हम सफ़र में ,ताज खो जाती कहीं,
है बड़ी यह कसमकस, अब कौन देगा साथ मेरा
वक्त ऐसा भी आएगा, जब सांस खो जाती कहीं,
संचालन कर रहे कशफ़ी ने पढ़ा-हाथ फैलाते नहीं हम तो किसी के आगे,हम फकीरों को जो देता है ख़ुदा देता है,फिर जिनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में ये प्रोग्राम था विनोद गौतम जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कई गीत पढ़े-जीवन धन्य बने मकरंद बने,जन्मदिवस लाये ऐसे स्नेह सुमन,कार्यक्रम के अध्यक्ष यज्ञदत्त त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में गौतम जी को आशीर्वाद देते हुए पढा,एक ठौर पे नहीं ठहरता आवारा पैसा है लड़का आखिर में साहित्य सभा के अध्यक्ष अनुज भदौरिया ने आये हुए सभी मेहमानों का आभार व्यक्त किया.