उरई | माधौगढ़ विधानसभा क्षेत्र के गत चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से उम्मीदवार बन कर सत्तारूढ़ पार्टी को कड़ी चुनौती देने वाली शीतल कुशवाहा को ओपरेशन लोटस के तहत भाजपा अपने पाले में खींच लेने में कामयाब रही |
विधानसभा चुनाव के बाद हाल के स्थानीय निकाय चुनाव में भी शीतल कुशवाहा कोंच में एक बार फिर बसपा के हाथी पर सवार हुई जिसमें उन्होंने भाजपा को नाको चने चबबा दिए थे | माना जाता है कि अगर प्रशासन के सहयोग से धांधली न कराई गई होती तो कोंच का चुनाव परिणाम शीतल के हक में रहता |
माधौगढ़ विधानसभा क्षेत्र में सजातीय कुशवाहा समाज की भारी भरकम उपस्थिति को देखते हुए इन चुनावों में हार जाने के वाबजूद युवा चेहरा होने के नाते शीतल कुशवाहा के भविष्य को संभावनापूर्ण माना जा रहा था लेकिन बसपा अपने सिम्बल पर राजनीति की इतनी ज्यादा कीमत वसूलती है जिससे हारने पर उम्मीदवार का दिवाला जैसा पिट जाता है | शीतल कुशवाहा इसकी भुक्तभोगी हैं जिसके चलते सत्तारूढ़ पार्टी का दामन थामना उनकी मजबूरी बन गया था | पर पीडीए के नारे पर जालौन गरौठा भोगनीपुर लोकसभा सीट पर अपनी गोटी लाल करने का मंसूबा संजो रहे इण्डिया गठबंधन को शीतल कुशवाहा की सोमवार को लखनऊ में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक के सामने भाजपा में शरणागत होने की घोषणा से जोर का झटका लगा है |
माधौगढ़ क्षेत्र में तीन बार कुशवाहा समाज के नेता बने विधायक
माधौगढ़ क्षेत्र में अभी तक तीन बार कुशवाहा समाज के नेताओं को विधायक बनाने में सफलता प्राप्त हुई है लेकिन तीनों बार यह तभी हुआ जब हाथी की सवारी की गयी | पहली बार 1989 में शिवराम कुशवाहा सफल हुए | इसके बाद 1993 में एक बार फिर शिवराम कुशवाहा को इस क्षेत्र में बाजी मारने में सफलता मिली | वे उस समय बसपा के प्रमुख संस्थापक नेताओं में शुमार थे जिससे सपा बसपा गठबंधन सरकार में बुंदेलखंड से बसपा नेतृत्व ने उनका नाम मंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था लेकिन नक़ल अध्यादेश पर बेबाक बयान के कारण मुलायम सिंह उनसे नाराज हो गए और उन्हें मंत्री बनाने को रजामंद नहीं हुए | बाद में उन्होंने प्रदेश भर में पंचशील रथ निकाल कर कुशवाहा , मौर्य ,सैनी और शाक्य समाज को जगाने का काम किया जो मायावती को नहीं पचा | यही कारण है कि मायावती ने 2 जून 1995 को जब पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो जिले के सारे विधायकों को कैबिनेट में शामिल करते वक्त शिवराम कुशवाहा का नाम छोड़ दिया | इसके बाद 2012 में बसपा के ही टिकट पर संतराम कुशवाहा विधायक निर्वाचित हुए पर 2017 में बसपा नेतृत्व ने उनकी उम्मीदवारी बदल दी थी | बाद में 2022 में उनकी बहू शीतल कुशवाहा को भी बसपा ने हाथी का सिम्बल थमाया |
कुशवाहा समाज के नेताओं का वर्तमान हाल, कोई इधर गया कोई उधर गया
माधौगढ़ विधान सभा क्षेत्र सहित जिले में कुशवाहा समाज की बाहुल्यता के कारण यहाँ इस समाज के कई नेता राजनीति के आकाश पर धूमकेतु बन कर चमके | सबसे पहले इस समाज के बड़े नेताओं में सरावन के गणेश प्रसाद कुशवाहा थे जिन्होंने लोकदल के समय अपने समाज की राजनैतिक जागृति में बड़ी भूमिका निभाई | वे अब इस दुनिया में नहीं हैं | इसके बाद कुशवाहा समाज की कद्दावर हस्तियों में शिवराम कुशवाहा का राजनीतिक अवतरण हुआ जिनकी बदौलत बसपा ने शुरूआती दौर में जालौन जिले से ले कर मध्य प्रदेश के भिंड जिले तक इस समाज में पैठ जमाई | बाद में उनके एक सहयोगी कामता प्रसाद को उनके पक्ष में संगठित जनाधार के कारण अर्जुन सिंह ने कैबिनेट का दर्जा दे कर कांग्रेस पार्टी में शामिल कर लिया | शिवराम कुशवाहा पर ही अब इण्डिया गठबंधन की निगाहें प्रमुख रूप से जिले में कुशवाहा बिरादरी का विश्वास जीतने के लिए जमी हुईं हैं | बसपा के जिलाध्यक्ष रहे मूल शरण कुशवाहा भी कुशवाहा समाज के जिले में एक बड़े सितारे के रूप में उजागर हुए | उन्होंने भी कुछ दिनों पहले भाजपा की सदस्यता ले ली है जबकि इसके पहले वे पूर्व कैबिनेट मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी के लिए काम करने लगे थे | हालांकि बाबू सिंह कुशवाहा को समाजवादी पार्टी जौनपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर चुकी है | पूर्व विधायक संतराम कुशवाहा राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हो गए थे और इसके पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष हैं हालांकि जयंत चौधरी द्वारा भाजपा से गठबंधन करने के बाद से वे असमंजस में समझे जा रहे हैं | उनसे दोनों ही खेमे इण्डिया गठबंधन और भाजपा के नेता संपर्क साध रहे हैं पर वे अपने पत्ते नहीं खोल रहे | जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ चुके लाखन सिंह कुशवाहा भी इस समाज के प्रमुख नेताओं में हैं जो फिलहाल इण्डिया गठबंधन के लिए जन संपर्क में जुटे हैं | महान दल ने भी कुशवाहा समाज की एकजुटता का नारा दे कर एक समय जिले की राजनीति में परचम लहराने का प्रयास किया था जिसके तहत क्षत्रिय समाज के रविन्द्र सिंह मुन्ना को 2017 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बना कर उसने जोर आजमायश की थी | इस चुनाव में महान दल ने ठीक ठाक वोट बटोरे थे लेकिन बाद में उसका यह टैम्पो बरकरार न रह सका |