मध्यप्रदेश कैडर के जाबाज आईपीएस अफसर विजय रमन गत दिवस दुनिया से विदा ले गये। 1975 बैच के आईपीएस विजय रमन के नाम के साथ कई उपलब्धियां जुड़ी हैं। एसपी के रूप में उन्हें पहली पोस्टिंग भिंड में 1980-81 में मिली थी। जैसा कि सभी जानते हैं भिंड जिला चंबल का हिस्सा है जहां उस दौर में यह पूरा इलाका दुर्दांत डकैतों की धमा चैकड़ी से थर्राया रहता था। काॅन्वेंट लहजे की अंग्रेजी बोलने वाले विजय रमन एसपी के लिये कोई टेलीफोन आता था तो उनके मुंह से रमन हियर ही निकलता था जिसे इस इलाके के अनगढ़ लोग समझ न पाने से अचकचा जाते थे। डकैतों के खिलाफ मुहिम में मुखबिरों का बड़ा योगदान होना चाहिये और भिंड के देहातों में डकैतों के इन सूचनादाताओं की जुबान जब यहां के शहरी लोग भी नहीं समझ पाते थे तो विजय रमन का उनसे संवाद बनाना कितना दुरूह होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन इन पंक्तियों के लेखक ने देखा कि मुखबिर को विश्वास में लेने के लिये विजय रमन घंटों उससे अधीर हुये बिना माथा पच्ची करते रहते थे। इस मामले में कड़ी मशक्कत के चलते मुखबिर की बात समझना और उसे अपनी बात समझाने में उन्हें कुछ ही दिनों में महारत हासिल हो गयी। चंबल में उन दिनों सबसे दुर्जेय गिरोह मलखान सिंह का था जिनको जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर सरकार ने 1 लाख रूपये का इनाम घोषित कर रखा था जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन इसके बावजूद लोग मलखान सिंह की मुखबिरी करने के लिये तैयार नहीं होते थे क्यांेकि उन्होंने बहुत गरीब परवर छवि बना रखी थी। चंबल के डकैत अपने को डकैत की बजाय बागी कहते थे। उनका कहना था कि वे बदमाश नहीं हैं इसलिये उन्हें डकैत क्यों कहा जाये। इसी शान में वे बहुत सारे उसूलों का निर्वाह करते थे। अपनी वारदात में किसी बुजुर्ग, बच्चे और महिला पर हाथ उठाने से उन्हें परहेज था। किसी गरीब को नहीं सताते थे। बड़े सेठ और जमींदारों को लूटकर या उनका अपहरण करके फिरौती की लंबी रकम ऐंठकर वे जो कमाते थे उसमें एक बड़ा हिस्सा गरीबों की लड़कियों की शादी और अन्य तरह की उनकी मदद में खर्च कर देते थे। मलखान सिंह भी चंबल के बागियों की इस परंपरा के जबर्दस्त कायल थे। इसलिये लोगों को उनमें इतनी ज्यादा आस्था थी कि उनके खिलाफ पुलिस की मदद करना वे कैसे गवारा करते। इसके साथ ही मलखान सिंह का गिरोह अपने जमाने का सबसे बड़ा डकैत गिरोह था। जिसमें 80 तक मेंबर भर्ती थे। उन्हें सेमी आॅटोमेटिक वैपन मुहैया थे और यह हथियार पहले पुलिस को मयस्सर नहीं थे। इसलिये राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश तीनों राज्यों में जहां मलखान सिंह मूवमेंट करते थे पुलिस उन्हें घेरने की बजाय उस इलाके से भाग खड़ी होती थी।
लेकिन विजय रमन दूसरी मिट्टी के बने पुलिस अफसर थे। उनका विश्वास गिरोह कितना भी बड़ा हो उससे सीधी टक्कर लेने में था जिससे डकैतों के हौंसले को तोड़ा जा सके। एथलीट से डकैत बने पानसिंह तोमर की कहानी उन पर फिल्म बन जाने के बाद दूर दूर तक लोग जान चुके हैं। उन्हें मार गिराने में भी विजय रमन ने ही भूमिका निभाई थी जिसके बाद उनका नाम डकैतों के लिये आतंक का पर्याय बन गया था। इसी दौरान उन्हें एक जगह मलखान सिंह के मूवमेंट का पता चला। वे कम फोर्स होते हुये भी उनसे सीधा मोर्चा लेने को पहुंच गये। इसमें घंटों तक उन्होंने डकैतों पर गोली चलायी और मलखान सिंह गिरोह के पैर उखाड़ दिये। इससे पहली बार मलखान सिंह बुरी तरह घबरा गये और पुलिस के सामने सरेंडर तक की सोचने लगे।
संयोग से उन्हीं दिनों तीन जाने माने पत्रकार जिन्होंने नक्सलियों पर उनके इलाके में बहुत पड़ताल करके एक शानदार किताब लिखी थी। पेंग्विन से छपी यह किताब सारी दुनिया में वस्ट सेलर किताब का दर्जा हासिल कर चुकी थी। यही पत्रकार अपनी अगली किताब चंबल के डकैतों पर लिखने के लिये इस इलाके में आये। इनमें कल्याण मुखर्जी, प्रशांत पंजियार और इनके एक और साथी थे। इन लोगों की कोशिश किसी तरह मलखान सिंह से मिलने की थी। इसमें चंबल इलाके के एक राजघराने ने उनकी मदद की जिसका राजनीतिक रसूख आज भी कायम है। मलखान सिंह ने इन पत्रकारों को बहुत मटेरियल दिया। इसके बाद उनके सामने अपनी यह फरियाद रखी कि वे किसी तरह मुख्यमंत्री के सामने उनका समर्पण करा दें। जिससे वे भी आगे की जिंदगी सुकून से गुजार सकेंगे और मुख्यमंत्री को भी देश विदेश में इससे बड़ी शोहरत मिलेगी। कल्याण मुखर्जी को यह टास्क पसंद आया और उन्होंने मलखान सिंह और मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बीच समर्पण के लिये मध्यस्थता करने की सहमति दे दी। जब वे इसके लिये अर्जुन सिंह को समझाने गये तो अर्जुन सिंह ने मलखान सिंह के समर्पण की बात सुनी तो उनकी बांछे खिल गयीं। उन्होंने कल्याण मुखर्जी से बात और बढ़ाने को कहा। इस प्रसंग का महत्व विजय रमन के संदर्भ में इसलिये है कि मलखान सिंह ने तब मुख्यमंत्री के सामने अपनी शर्तों का जो पिटारा खोला उसमें सबसे ऊपर इस शर्त को रखा कि भिंड के एसपी विजय रमन को पहले सरकार हटाकर इतनी दूरी भेजे कि वे एक दिन में वापस भिंड न आ सकें। मलखान सिंह विजय रमन से इतना डरे हुये थे कि उन्हें लगता था कि तबादले के बाद भी विजय रमन आस-पास रहे तो उनके समर्पण के समय आकर उनका एनकांउटर कर जायेंगे। बहरहाल अर्जुन सिंह ने मलखान सिंह की यह तमन्ना पूरी करने के लिये विजय रमन को भिंड से स्थानांतरित करके रायपुर का एसएसपी बना दिया। गो कि उस समय छत्तीसगढ़ अलग राज्य नहीं बना था और इसलिये रायपुर मध्यप्रदेश में ही था। यह मामला बाद में विधान सभा में भी गूंजा। प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि एक डकैत के कहने से ईमानदार और बहादुर पुलिस अफसर को अर्जुन सिंह ने भिंड से शंट कर दिया तो अर्जुन सिंह ने सदन में जबाव दिया कि वे भी विजय रमन की ईमानदारी और बहादुरी के कायल हैं। उन्होंने विजय रमन को भिंड से हटाया नहीं है बल्कि अपेक्षाकृत कम सर्विस में सीधे उनको रायपुर का एसएसपी बतौर इनाम बना दिया है। विजय रमन बाद में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भी गये जहां उन्होंने नक्सलियों और पृथकतावादी आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन में भाग लिया। कश्मीर में बीएसएफ के आईजी के रूप में तैनाती के समय कुख्यात गाजी बाबा को मारने का श्रेय भी उन्हीं के खाते में दर्ज है।
जब विजय रमन भिंड में थे मैं उस समय पत्रकारिता की शुरूआत कर रहा था। मुझे उनका बहुत सान्निध्य मिला। उनसे क्लू लेकर मैंने कई एक्सक्लूसिव खबरें लिखीं जो देशभर के अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित की गयीं। मैं उस समय फीचर एजेंसी संवाद परिक्रमा को अपनी सेवायें दे रहा था जो देश के सबसे ज्यादा हिंदी अखबारों में छपने वाली एजेंसी थी। विजय रमन ही मेरी सबसे ज्यादा चर्चित स्टोरी डकैतों को हथियार कौन देता है खबर के श्रोत थे। इस खबर के कारण सेना के कुछ भगोड़ों का भंडाफोड़ हुआ जो सीमा से तस्करी करके प्रतिबंधित हथियार डकैतों के लिये ला रहे थे। इसमें कई गन विक्रेताओं की भी मिली भगत थी। मेरी खबर के कारण सेना के एक भगोड़े को गिरफ्तार किया गया। लगभग 9 असलहा की दुकानों के लाइसेंस रद्द किये गये और कुछ प्रभावशाली असलहा विक्रेताओं को जेल जाना पड़ा। विजय रमन बेजोड़ पुलिस अफसर थे लेकिन कैंसर ने उनको निगल लिया। उन्हें बार बार सलाम।