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Thursday, November 21, 2024

स्थापना दिवस पर काव्य गोष्ठी , मुशायरा में बांधा समां

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उरई | जनपद के रसखान के नाम से चर्चित नासिर अली नदीम साहब की अध्यक्षता ,प्रोबेशन अधिकारी अमरेंद्र पोतस्यायन जी , समाजसेवी कृपाशंकर बच्चू महाराज , वरिष्ठ् साहित्यकार अनिल शर्मा , डी वी कालेज के पूर्व प्राचार्य द्वय डॉ आदित्य सर व डॉ ए के श्रीवास्तव जी के आतिथ्य में सिटी सेंटर में साहित्य  संस्था क़लमकार के प्रथम स्थापना दिवस पर भव्य कवि सम्मेलन , मुशायरा की शुरुआत  प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम की सरस्वती वंदना और अनवार अहमद अनवार की नाते पाक से हुई | संचालन कर रहे  साहित्य सभा के संयोजक शफीकुर्रहमान कशफ़ी ने पढ़ने के लिए पहले दानिश को बुलाया | उन्होंने पढा,जो दिल तेरे गम से मुनव्वर न होता,मैं कुछ और होता सुख़नवर न होता | इसके बाद सौमित्र त्रिपाठी ने पढ़ा,- जब लगा कि सब कुछ ठीक हो गया,तभी एक और पर्चा लीक हो गया |प्रगति मिश्रा ने पढ़ा,-क़लमकार सच्चा वही करे सुखद संचार,विनय शीलता नम्रता वाणी में हो प्यार | दिव्यांशु दिव्य ने पढ़ा,हर संकट के हर पथ पर हम डटे रहेंगे,सत्ता को राह दिखाते क़लमकार हैं हम,शायर |  फ़हीम बसौदवी ने पढ़ा,हो गया गजब कितना उनके मुस्कुराने में,हो गए बहुत बदनाम रोज़ आने जाने में | फ़राज़ ने पढ़ा,शरीफ आदमी से ज़माना है लेकिन शरीफ आदमी का ज़माना नहीं है | कवियित्री इंदु विवेक ने पढ़ा -लिखा उसने ग़ज़ल में नाम मेरा,मगर हमसे छिपाया जा रहा है | शिरोमणि सोनी ने पढ़ा,प्रेम की बात समझते हो क्या प्रेम का सार समझते हो,दिल जिसे देखना चाहे क्या नैन की धार समझते हो | कवियित्री शिखा गर्ग ने पढ़ा- काट जंगल बनाये मनुज ने भवन,बढ़ रही ग्रीष्म में कुछ इसी से तपन | अनुज भदौरिया ने पढ़ा क़लमकार ने रच दिया क़लमकार का रूप,गीत ग़ज़ल मुक्तक खिले बनकर स्वर्णिम धूप,राघवेन्द्र कनकने ने पढ़ा | आखिर खुद को कितना बदलें क्या क्या अंगीकार करें कैसे इस झूठी दुनियाँ में सच का कारोबार करें | पुष्पेंद्र पुष्प ने पढ़ा वही रंगत वही तस्वीर मेरी,बदलती ही नहीं तासीर मेरी | डॉक्टर रेनू चन्द्र ने पढ़ा, दुआ मांगें चलो सच्चे ह्रदय से,सभी को हो मयस्सर खिलखिलाहट | |असरार अहमद मुक़री ने पढ़ा,गंगा की शुद्धता को जाने न दीजिए,इसमें अशुध्द लोगों को आने न दीजिए \

कार्यक्रम की आयोजिका क़लमकार संस्था की अध्यक्ष प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढ़ा  दिखता सबको नूर हमारी आंखों में,तेरी जो तस्वीर उतारी आंखों में | सिद्धार्थ त्रिपाठी ने पढ़ा-झूठ की बुनियाद पर विश्वास की दीवार है,बन गई तो बन गई अब इसे गिराओ न | संचालन कर रहे शफीकुर्रहमान कशफ़ी ने पढ़ा,उरूज पाएं जो मज़लूम की तबाही से,तो हम फकीर भले ऐसी बादशाही से|अतीक  ने पढा,काश मिल जाए निशानी उसकी,हम पुरानी किताब देखेंगे | मंच पर मौजूद वरिष्ठ कवियित्री माया सिंह माया जी ने पढ़ा _सिंहासन खाली कर डाला तुम्हारे लिए प्रिया | कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उस्ताद शायर नासिर अली नदीम साहब ने पढ़ा – सबके सम्मान से अभिमान हमें रोकता है |

अच्छे कामों से गलत ज्ञान हमें रोकता है,

अपने जैसा ही बनाने पे तुला है शैतान,

बनने लगते हैं जो इंसान हमें रोकता है |

इस दौरान अनवार साहब,नईम ज़िया,महेश प्रजापति,परवेज़ अख्तर,रामशंकर गौर जावेद क़सीम,शिवम सोनी,फरीद अली बशर,ब्रह्मप्रकाश अवस्थी,विवेक राय,ने भी काव्यपाठ किया,इस दौरान प्रगति श्रीवास्तव,सुरेश वर्मा,ताहिर अंसारी ने सभी साहित्यकारों माल्यार्पण कर स्वागत किया अंत में प्रिया श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों और वहां मौजूद सभी साहित्यकारों और सुधि श्रोताओं का सफल कार्यक्रम के लिए आभार  व्यक्त किया |

 

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