प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वंशवाद की तोहमद को कांग्रेस की सबसे कमजोर नब्ज के रूप में चिंहित कर रखा है। गाहेबगाहे वे वंशवाद पर इस अंदाज में चोट करते रहते है मानो कोई बहुत बड़े क्रांतिकारी उद्देश्य के लिए वे सरफरोशी की तमन्ना लेकर वे मैदान में कूद पड़े हों। शुरू में उनका जिहादी अंदाज लोगों को बहुत प्रभावित करता था। लेकिन अब उसकी काफी हद तक पोल खुल चुकी है। यह दूसरी बात है कि यह जानने के बावजूद मोदी को कोई दूसरा बाना ओढ़ने की सूझ नहीं दिख रही है। अपनी बेनकाब हो चुकी अदाओं के वे रिपीट करते हैं तो स्थिति और ज्यादा बिद्रूप बन जाती है। मोदी में इसके कारण गहरी हताशा झलकने लगी है जो लोग नोटिस कर रहे हैं। मोदी के लिए यह बुरा समय है।
गत 15 अगस्त को भी लाल किले से होने वाले प्रधानमंत्री के पारंपरिक भाषण में उन्होंने वंशवाद के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ने के आवाहन में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसलिए लोगों की निगाह इस बात पर हो गई थी कि कांग्रेस को इस आधार पर घेरने वाले मोदी खुद अमल में वंशवाद से कितना परहेज करते हैं लेकिन अब यह बात प्रमाणित होती जा रही है कि प्रमाणिकता के मामले में कांग्रेस उनसे बहुत आगे है। काफी पहले भारतीय राजनीति की वंशवादी फिदरत को लेकर विदेशों में जब राहुल से सवाल किया गया था तो उन्होंने कोई कपटपूर्ण या प्रवंचना पूर्ण प्रवचन करने की बजाय सहज उत्तर दिया था। जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि अगर उन्हें लक्ष्य करके वंशवादी राजनीति पर प्रहार किया जा रहा है तो इसकी कोई सफाई नहीं दी जानी चाहिए। भारतीय राजनीति में वंशवाद का अपना एक स्थान है जिसे झुटलाया नहीं जा सकता। मोदी ने उनके इस बयान को लेकर उनके लत्ते ले डालने की कोशिश की थी। मोदी इसमें कामयाब हो जाते बशर्ते उन्होंने अपनी पार्टी में वंशवाद के आधार पर लोगों को बढ़ाने के आग्रह के प्रतिकार का साहस दिखाया होता। लेकिन वास्तविकता के आगे झुकने की नियति को वे नकार नहीं सके क्योंकि उनमें सिद्धांतों और प्रतिबद्धताओं के लिए कोई जोखिम उठाने की नैतिक कुब्बत नहीं है।
ताजा मामला हरियाणा विधानसभा के उपचुनाव का है। जहां उन्होंने सिद्धांत से मुकरने की पराकाष्ठा का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने 67 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है जिसमें 09 विधायक और तीन मंत्रियों के टिकट तो काट दिये गये लेकिन जहां तक नेताओं के वंशजों और परिवारजनों को टिकट देने का सवाल है उसमें भारतीय जनता पार्टी ने सबको पीछे छोड़ दिया है। उदाहरण के तौर पर लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुई किरण चैधरी को आरएसएस की अनिच्छा के बावजूद पार्टी के प्रति निष्ठा का सबूत देने के लिए प्रतीक्षा करने को कहने की बजाय राज्यसभा में भिजवाने में उन्होंने कोई संकोच नहीं किया। आरएसएस का आग्रह यह था कि आयातित नेताओं को तब तक पार्टी को पुरस्कृत नहीं करना चाहिए जब तक कि वे भाजपा की विचारधारा के प्रति समर्पण का सबूत देने के लिए पर्याप्त समय तक बिना पद और महत्व के पार्टी की सेवा करने का दायित्व निभाने को तैयार न हों। पर अवसरवादी राजनीति को अपने स्वार्थ में बढ़ावा देने में लगे मोदी के लिए किरन चैधरी जैसों की परीक्षा लेना तो संभव था ही नहीं उल्टे किरन चैधरी को डबल संतुष्ट करने के लिए डबल ईनाम तक्शीम करते हुए उन्हें राज्यसभा में पहुंचाने के बाद उनकी बेटी श्रुति चैधरी को तोसाम विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित करा दिया। राज्यसभा में एक और बाहरी कार्तिकेय शर्मा के भी मामले में यही हालत है उनसे पार्टी की पर्याप्त सेवा करने के लिए कहने की बजाय उन्हें एकदम पुरस्कृत राज्यसभा में भेजकर कर दिया गया। साथ ही उनकी मां शक्तिरानी शर्मा को हरियाणा विधानसभा के कालका विधानसभा क्षेत्र से टिकट दे दिया गया। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि महिला सुरक्षा की चिंता में दुबली हुई जा रही भाजपा को यह भी पता है कि शक्तिरानी शर्मा के सबसे बड़े बेटे सिद्धार्थ वरिष्ठ उर्फ मनु शर्मा दिल्ली के कुख्यात जेसिका लाल हत्याकांड मंे दोषी ठहराये जा चुके हैं पर परिवार की यह पृष्ठभूमि शक्तिरानी शर्मा के मामले में भाजपा के कर्णधारों के किसी भी नैतिक संकोच का सबब नहीं बन सकी। वंशवाद को कैश कराने के प्रलोभन का संभरण न कर पाने की भाजपा की मजबूरी का एक और उदाहरण कांग्रेस के पूर्व नेता रहे कुलदीप विश्वनोई के बेटे भव्य विश्वनोई हैं जिन्हें आदमपुर विधानसभा सीट से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया है।
इसी क्रम में पूर्व मंत्री करतार सिंह भडाना का नाम लिया जा सकता है जिनके बेटे मनमोहन भडाना को भाजपा ने समालखा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा द्वारा घोषित की गई बदनाम उम्मीदवारी में सुनील सांगवान का नाम भी शामिल है जिन्हें दादरी से पार्टी ने चुनाव मैदान में उतारा है। सुनील सांगवान का परिचय यह है कि वे रोहतक की उस जेल के सुपरटेंडेंट रहे हैं जिसमें बलात्कार के लिए दोषसिद्ध तथाकथित संत राम रहीम को बंद रखा गया था। सुनील सांगवान ने राम रहीम को जेल में कोई कष्ट नहीं होने दिया इसलिए रामरहीम ने ही भाजपा को उन्हें टिकट देने के लिए निर्देशित किया था जिसकी अवहेलना भाजपा के कर्णधार कैसे कर सकते थे। बेटियों की मान मर्यादा की सुरक्षा के लिए आंसू बहाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की असलियत इससे स्पष्ट हो गई। हालांकि महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे बृजभूषण शरण सिंह को भी निरापद रखने में उन्होंने बेशर्मी से पूरी शक्ति झौंकी थी। जाहिर है कि ऐसे नेता का कोई कौलफेल नहीं माना जा सकता।
इसको बैलेंस करने के लिए यौन उत्पीड़न के आरोपी संदीप सिंह को भाजपा ने टिकट नहीं दिया है उनके साथ-साथ पहली सूची में बिजली मंत्री रणजीत सिंह चैटाला, खेल राज्यमंत्री संजय सिंह और सामाजिक एवं न्याय अधिकारिता मंत्री विशम्भर बाल्मीक का भी टिकट भाजपा ने काट दिया है। रणजीत सिंह चैटाला इसके बाद बगावती तेबर दिखा रहे हैं उन्होंने बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने का इरादा जता दिया है। अन्य जिन नेताओं के टिकट काटे हैं उनको भी वे निर्दलीय रूप में मैदान में आकर भाजपा की चुनावी बैण्ड बजाने के लिए कहने का अवसर जुटा रहे हैं। नरेन्द्र मोदी भाजपा के खोखलेपन को उजागर करने का भी सबब बन गये हैं। इसीलिए उन्होंने हर चुनाव की तरह हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भी उम्मीदवारों के चयन में तमाम बाहरियों पर भरोसा जताया है। इनमें जजपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए तीन पूर्व विधायकों का टिकट कर दिया गया है। इनेलो छोड़कर आये पूर्व विधायक श्याम सिंह राणा को उनके रादौर विधानसभा क्षेत्र से कमल निशान का उम्मीदवार बना दिया गया है। जजपा छोड़कर आये संजय कबलाना को बेरी से पूर्व मंत्री देवी बबली को टोहाना से, रामकुमार गौतम को सफींदों से और पूर्व मंत्री अनूप धानुक को उकलाना से चुनाव मैदान में उतारा है। वैसे तो भाजपा ने भी खिलाड़ियों को टिकट दिया है जिसके तहत भारतीय कबड्डी के पूर्व खिलाड़ी दीपक हुड्डा को मेहम से मैदान में उतारा गया है लेकिन कांग्रेस से उम्मीदवार बनने की इच्छुक महिला पहलवान बबिता फोगाट को रोकने के लिए रेलवे बोर्ड से उनके इस्तीफे की मंजूरी में अड़ंगा लगवा दिया गया है। भाजपा की क्षुद्र मानसिकता के इस तरह से उजागर होने को लेकर पार्टी के कर्णधारों को कोई हिचक महसूस नहीं हो रही है। उल्लेखनीय यह भी है कि भाजपा ने सीएम नायब सैनी का भी निर्वाचन क्षेत्र बदल दिया है। उनके कारण करनाल को सीएम सिटी का दर्जा मिल गया था लेकिन पार्टी ने अब कहा है कि वे करनाल विधानसभा क्षेत्र छोड़कर लारवा से चुनावी रण में उतरें। इसी तरह कोसली से विधायक लक्ष्मण यादव की सीट में बदलाव करके उन्हें रेवाड़ी से और डिप्टी स्पीकर रणवीर गंगवा को नलवा की बजाय बरनाला से चुनावी मैदान में ताल ठोकने के लिए हरी झंडी मिली है। इन परिवर्तनों से पार्टी कोई सकारात्मक प्राप्ति करेगी या विपत्ती काल में मति फिर जाना इसकी वजह है यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट होेगा।
संघ का गुस्सा नरेन्द्र मोदी को लेकर इसलिए ही नहीं थम पा रहा है कि वे जकड़ जरा सी ढ़ीली करते ही मनमानी पर उतर आते हैं। संघ चाहता था कि शुचिता और नैतिकता के आधार पर राजनीति को आगे बढ़ाने का काम भाजपा नेतृत्व द्वारा किया जाये भले ही इसमें उसे थोड़ा बहुत जोखिम उठाना पड़े। पर समस्या यह है कि नरेन्द्र मोदी ने अपने लिए खुद कारा बुन रखी है। वे सत्ता गंवाने को लेकर सहज नहीं हैं। उन्हें पता है कि अगर कोई रिस्क उन्होंने लिया और सत्ता उनके हाथ से फिसल गई तो उनका कैसा भी हश्र हो सकता है। चूंकि जैसी फसल उन्होंने बोई है वैसी ही उन्हें काटनी पड़ेगी। सो अपने को बलि का बकरा बनाने के लिए प्रस्तुत करना उनको संभव नहीं हो सकता।