भारतीय जनता पार्टी का स्थान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में उसके राजनीतिक औजार के बतौर है। महात्मा गांधी की हत्या में संघ की भूमिका का चर्चा होने पर जब उस पर प्रतिबंध लगाया गया तो उसे अपने राजनैतिक मोर्चे की जरूरत महसूस हुई जिसके नतीजे में जनसंघ अस्तित्व में आया जो कि भारतीय जनता पार्टी का पूर्वज राजनीतिक संगठन था। इमरजेंसी में जब सारे विपक्ष के लिए अस्तित्व पर बन आयी थी तो जनता पार्टी का गठन किया गया जिसमें लगभग सारे विपक्षी दलों ने अपने को विलय कर दिया जनसंघ ने भी इसका अनुसरण किया। गरज यह है कि उस समय अस्तित्व बचाने के लिए मरता क्या न करता की स्थिति थी। लेकिन जनता पार्टी को लेकर जनसंघ का मन साफ नहीं था। कांग्रेस को सत्ता से अपदस्थ करने की जरूरत पूरी होते ही जनसंघ घटक जनता पार्टी में शामिल अन्य दलों को गच्चा देकर पूरी सत्ता खुद गड़प कर जाने का तानाबाना बुनने लगा। भोपाल में तत्कालीन संघ प्रमुख बाला साहब देवरस ने जनसंघ घटक के लोगों की बैठक आहूत कर इस मंसूबे के लिए रूपरेखा प्रस्तुत की जिसे यूएनआई के तत्कालीन ब्यूरो प्रमुख जालखंम्बाटा ने स्टिंग करके उजागर कर दिया समाजवादी इससे सतर्क हो गये। जालखंम्बाटा पर केस करने की धमकी जनसंघ घटक ने दी तो उन्होंने कहा कि मेरे पास देवरस के भाषण का टेप है। इससे जनसंघ घटक के नेता और संघ डर गया। उसे लगा कि सचमुच टेप हुआ तो और अधिक छीछालेदर होगी। पर इस खबर ने समाजवादियों को उत्तेजित कर दिया और जनता पार्टी टूट गई। उसकी सरकार के असमय पतन का कारण एक पत्रकार का रहस्योद्घाटन बना।
इसके बाद अटल जी ने जनसंघ के साथियों के लिए एक अलग राजनैतिक मंच भारतीय जनता पार्टी के नाम से गठित कर दिया। चूंकि उन्हें संघ परिवार के रिमोट कंट्रोल के रूप में काम करना पसंद नहीं था। लोग उन्हें जनसंघ का कांग्रेसी कहते थे और वैचारिक स्तर पर कई मामलों में वे संघ से अलग हटकर सोचते थे। उन्होंने मोरारजी सरकार में विदेश मंत्री के रूप में कार्य करते हुए अरब देशों के साथ संबंधों को वरीयता की कांग्रेस की नीति जारी रखकर संघ को काफी दुखी किया। उन्होंने गांधीवादी समाजवाद के माडल पर देश की व्यवस्था को गढ़ने का संकल्प भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया था। संघ इसे लेकर भी असहज था। इस कारण संघ का भाजपा के प्रति अपनापन दरका रहा। उसने 1980 के चुनाव में और उसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के प्रति मोह छिटकाकर कांग्रेस का साथ दिया था यह इतिहास में दर्ज है। लेकिन बाद मे जब एनडीए के नेता के रूप में अटल जी प्रधानमंत्री बने तब तक संघ के गिले शिकबे भाजपा का लेकर काफी हद तक दूर हो गये थे। कांग्रेस कमजोर हो गई थी और सामाजिक न्याय की शक्तियां हिन्दुत्ववादी व्यवस्था के लिए घातक रूप में सामने आ चुकी थी। अटल जी भी इन शक्तियों से सशंकित थे। चूंकि उनकी वर्ग चेतना सामाजिक न्याय की शक्तियों के अभियान को संकट की तरह कुरेद रही थी। इसलिए उन्होंने कहा कि मुझे अपने पर संघ का स्वयं सेवक होने के लिए गर्व है। सामाजिक न्याय की शक्तियों के बिखराव के लिए समाजवादी कुनबे के एक बड़े वर्ग को एनडीए में समेटकर उन्होंने संघ के लिए सपूत के दायित्व का जो जोरदार प्रदर्शन किया उससे भी संघ उनका एक बार फिर पूरी तरह मुरीद हो गया। लेकिन अटल जी के समय राजनैतिक परिस्थितियां ऐसी थी कि उन्हें सहयोगी दलों के कारण संघ के एजेण्डे के कार्यो को स्थगित करने का आश्वासन देना पड़ा था। संघ भी तात्कालिक मजबूरी समझ रहा था लेकिन उसे विश्वास था कि जैसे ही अटल जी के प्रयासों से भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने की सामथ्र्य जुटा लेगी उसके एजेण्डे पर अमल सामने आने लगेगा। लेकिन अटल जी के लिए परिस्थितियां व्यक्तिगत रूप से उनकी अपार लोकप्रियता के बावजूद प्रतिकूल हो गई और उन्हें सत्ता से बाहर हो जाना पड़ा। संघ के लिए एक बार फिर सहर्ष और गर्दिश का दौर आ पड़ा।
2014 में जब संघ ने अटल जी के अशक्त होने के बाद नये राष्ट्रीय चेहरे के रूप में लालकृष्ण आडवाणी को परे करके नरेन्द्र मोदी को प्रोजेक्ट किया तो मोदी ने 2014 में पहली बार में ही भाजपा को पूर्ण बहुमत से सत्तासीन कराकर दिखा दिया। इसके बाद उन्होंने यह भी प्रदर्शित कर दिया कि उनके पास इस सत्ता को निरंतर बनाये रखने का भी कौशल है। 2019 में भी भाजपा और अधिक बहुमत से सत्तासीन हो गई। इस बीच नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर में 370 भी खत्म कर दिया, अयोध्या में राम मंदिर भी बनवा दिया। हिन्दुत्व की विजय पताका जबरदस्त तरीके से सारे देश में लहराकर दिखा दी। निश्चित रूप से संघ की इससे बांछे खिल गई। पर तमाम गुण के बावजूद मनमाने तरीके से मोदी के काम करने की आदत के कारण संघ विचलित हो गया। संघ के लोगों के संस्कार आंखों देखी मक्खी निगल जाने के लिहाज से नैतिकता के मामले में मजबूत नहीं हैं लेकिन मोदी लोकलाज से बिल्कुल नहीं डरते। उनके बारे में यह खुलासा होने लगा कि वे चहेते कारपोरेट को अनुचित लाभ देने के मामले में पराकाष्ठा कर रहे हैं। विरोधी दलों के सफाये के लिए उनके भ्रष्ट तत्वों को अंगीकार करने और सिर पर बैठाने में भी उन्हें संकोच नहीं हो रहा। उन्हें अपनी प्रमाणिकता गंवाने की भी फिक्र नहीं है। आरोप लगाने में किसी भी सीमा तक चले जाते हैं और इसके बाद वही करने लगते हैं जिसके लिए विपक्ष को कटघरे में खड़ा कर रहे होते हैं। सादगी और संयम के जीवन मूल्यों को परे करके विलासी जीवन शैली को बढ़ावा देना उनकी फितरत है। उनकी अति नाटकीयता से भी जनमानस ऊबने लगा है। संघ ने जब इन कारगुजारियों के लिए उन्हें चेताना चाहा तो उन्होंने कहलवा दिया कि उन्हें संघ की कोई जरूरत नहीं है। संघ को नीचा दिखाने की जुर्रत तक वे बढ़ गये। संघ इससे बेहद क्षुब्ध हुआ।
2024 के लोकसभा चुनाव मंे जब वे अपने बूते बहुमत नहीं जुटा सके तो संघ को मौका मिल गया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्वयं को भगवान घोषित कराने की उनकी नारद मोह जैसी भंगिमा को लेकर पुणे में एक प्रशिक्षण वर्ग के समापन समारोह में उन पर जमकर प्रहार किये। इस बीच राजनीतिक परिस्थितियों के कारण नरेन्द्र मोदी को भी अपनी अकड़ का संवरण करना पड़ा। बल्कि वे दीनहीन जैसी स्थिति में पहुंच गये। संघ से पैच अप के लिए दूत दौड़ाये। संघ ने भी देखा कि उसके सामने दूसरा विकल्प भी तो नहीं है। रार ज्यादा बढ़ायी और भाजपा सत्ता से अपदस्थ हो गई तो उसे भी दुर्दिन देखने पड़ेंगे। इस धारणा के तहत संघ भी उनके प्रति नरम हो गया। लेकिन मोदी जैसे ही निश्चिंत हुए फिर मनमानी करने लगे। संघ ने रोका था कि बाहर के दागी लोगों को पार्टी में लाने में परहेज करें लेकिन उन्होंने राज्यसभा के दोनों स्थानों पर पार्टी के टेस्टेड लोगों को मौका देने की बजाय बाहरियों को सिर माथे लिया। हरियाणा विधानसभा के चुनाव में आयातित उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे डाली। संघ इससे बहुत खिन्न हुआ। संघ का मानना है कि मोदी को यह उलट वासियां अपने चहेते अमित शाह के निजी स्वार्थो के कारण करनी पड़ रही हैं क्योंकि उनके कई गूण राज अमित शाक के कब्जे में हैं। चर्चा है कि अमित शाह पार्टी में अन्य दलों के दागियों को शामिल कराने, टिकट दिलाने और मंत्री बनवाने की कीमत वसूलते हैं जबकि इससे भाजपा का तो अहित हो ही रहा है संघ की मर्यादा भी जनमानस में घट रही है। ऐसे में इस खेल का समाप्त कराने के लिए संघ इस बात पर उतर आया है कि मोदी 75 वर्ष की उम्र को छूने वाले हैं। ऐसे में वे पार्टी के लिए बनाये गये उस नियम का पालन करने की हामी भरें जिसके तहत सत्ता छोड़कर उन्हें मार्ग दर्शक मंडल में बैठना होगा। इस मामले में मोदी संघ को हाथ नहीं रखने दे रहे हैं। नतीजतन संघ अब उन्हें इस हेतु मजबूर करने के लिए आमादा हो गया है। मोदी विदेश में हिन्दू मुस्लिम एकता के कसीदे पढ़ रहे थे तो संघ प्रमुख मोहन भागवत एक बार फिर कह रहे थे कि हर व्यक्ति को अपनी सोच से अच्छे काम करना चाहिए। इसका पुरस्कार मिले या अच्छे कामों के लिए आप भगवान की श्रेणी में रखे जाने लगें यह काम आपका नहीं लोगों का है। मोदी पर यह बहुत ही तीखा कटाक्ष है। मोदी इस हालत में नहीं हैं कि घुमा फिराकर भी इसका प्रतिवाद कर सकें या सफाई दे सकें। लेकिन यह स्पष्ट हो चुका है कि संघ ने अभी उनको बख्शा नहीं है।