-राधा रमण
सूक्त का शाब्दिक अर्थ होता है अच्छी तरह कहा हुआ। ऐसे में जाहिर है कि पृथ्वी सूक्त का मतलब है धरती माता के बारे में भलीभाँति कहा गया ऋक् अथवा मन्त्र। पृथ्वी सूक्त अथर्ववेद के बारहवें काण्ड का पहला सूक्त है। कुछ विद्वान् इसे भूमि सूक्त भी कहते हैं। कायदे से दोनों सही हैं। चाहे आप इसे पृथ्वी कहें या भूमि, कोई फर्क नहीं पड़ता।
पृथ्वी सूक्त केरल निवासी जानेमाने लेखक रंगा हरि की नयी पुस्तक का नाम है जिसका प्रकाशन मशहूर प्रकाशक किताबवाले ने किया है।
इस किताब में लेखक का कहना है कि किसी सूक्त को अन्दर और बाहर से समझने के लिए चार कारक महत्वपूर्ण हैं। पहला, सूक्त का पाठ। दूसरा, ज्ञान देने वाले को जानना। तीसरा, वह स्थान, जहाँ से ज्ञान दिया गया और चौथा, वह जिसे ज्ञान दिया गया।
लेखक यह भी कहता है कि मोटे तौर पर, पृथ्वी की यह स्तुति पृथ्वी के किसी विशेष भाग के बारे में नहीं है। यह सूक्त सम्पूर्ण पृथ्वी की बात करता है। इसलिए कुछ अंग्रेजों का कहना है कि इसे मातृभूमि सूक्त यानी भारत सूक्त कहना गलत है। लेकिन जब हम बताये गये चार कारकों में से तीसरे कारक के बारे में सोचते हैं तो पाते हैं कि यह सूक्त बर्फ से ढके पहाड़ों, बारहमासी बहने वाली नदियों, धरती के निवासियों द्वारा बनाये गये गाँवों और कस्बों, बनस्पतियों और जीवों से समृद्ध, प्रचुर मात्रा में जंगलों वाले छह मौसम और वर्षा की भूमि से उत्पन्न होता है। इसी भूमि से ऋषि ने पृथ्वी की बात की थी। भूगोल का प्राथमिक ज्ञान हमें यह मानने पर मजबूर करता है कि यह देश भारत ही हो सकता है।
पुस्तक पृथ्वी सूक्त में 63 मन्त्र अथवा ऋक् हैं। यह सूक्त पृथ्वी का गायन करता है, परन्तु यह पार्थिव नहीं है। यह स्वर्ग का गीत गाता है, परन्तु यह स्वर्गीय नहीं है। यह इन्द्र, अग्नि, वायु और सूर्य जैसे देवताओं का गायन करता है परन्तु यह ईश्वरीय नहीं है। यहाँ पृथ्वी का मनुष्य स्वर्ग की दिव्यता से हाथ मिलाता है। यह न तो अत्यधिक भौतिकवादी है और न ही आध्यात्मिक। वास्तव में, यह सोने और ताॅंबे की मिश्रधातु की तरह दोनों का सामंजस्यपूर्ण संयोजन है। इसमें जानवर और जंगल, नदियाँ और महासागर, मैदान और पहाड़, सभी मिलकर जीवन और ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं। यह किसी राष्ट्र विशेष की बात नहीं करता। यह पूर्णतः मानववादी है। कोई भी देश, काॅपीराइट के डर के बिना इसका मालिक हो सकता है।
आखिर में लेखक सीना ठोक कर कहता है कि अब समय आ गया है कि हमारी इस पवित्र भूमि भारत से इसकी गूँज विश्व में हो। यह उम्मीद बेमानी नहीं होगी कि यह पुस्तक भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।
इस किताब की भूमिका केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान और हरिहर आश्रम हरिद्वार के संस्थापक स्वामी अवधेशानन्द महाराज ने लिखी है। किताबवाले प्रकाशन के कर्ताधर्ता जैन बंधुओं प्रशांत जैन और मोहित जैन ने इस पुस्तक की बेहतरीन छपाई में विशेष सावधानी बरती है। इसलिए वह भी साधुवाद के पात्र हैं। पुस्तक हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। अमेजन से भी इसकी खरीद की जा सकती है।