उरई। नोट बंदी से बेहाल जनता को लूटने मे लगे बैंक अधिकारियों के खिलाफ सरकार बंदर घुड़की देने के अलावा कोई कड़ी कार्रवाई करने में बच रही है लेकिन अगर गरीब की हाय निष्फल न जाने की कहावत सही हुई तो इन्हें ऊपर वाले की देर-सबेर ऐसी लाठी झेलनी पड़ेगी कि उन्हें अपने पापों पर बहुत पछतावा होगा।
नोट बंदी की परेशानी खासतौर से ग्रामीण बैंकों के लिए उत्सव का सबब बन गई हैं। दमरास स्थित इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक में कैश देने में खुलेआम मुंह देखा व्यवहार चलाया जा रहा है। दलालों के माध्यम् से जिन खातेदारों से कमीशन सेट हो जाता है उन्हीं को कैश मिल पाता है बाकी लोग हर रोज कतार में लगे-लगे बैैरंग लौटते हैं। बुधवार को इस रवैये की वजह से तब दमरास में उक्त बैंक के सामने अफरा-तफरी मच गई जब रुपये निकालने आई वृद्धा जनक दुलारी मानपुर और सीगेंपुर की कमलेश कुमार लाइन में खड़ी-खड़ी थकान की वजह से पछाड़ खाकर गिर पड़ीं। जनक दुलारी के परिजनों ने बताया कि उनके यहां बेटी की शादी है जिससे उन्हें कैश की बहुत जरूरत थी। लेकिन बैंक के स्टाॅफ की मनमानी की वजह से वे हर रोज अपनी बारी आने तक कैश खत्म हो जाने का फरमान सुनकर वापस लौट जाती थी। इसी चिंता में बुधवार को उनकी हालत बिगड़ गई।
उधर रेढ़र स्थित इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक का भी हाल तो इससे भी ज्यादा गया-गुजरा है। रिटायरमेंट की कगार पर खड़े मैनेजर साहब को नौकरी के अंतिम समय राम नाम की लूट सूझ रही है जिससे वे जरूरतमंदों को मानक के अनुरूप कैश देने की बजाय दो हजार रुपये में काम चलाने के लिए मजबूर कर रहे हैं जबकि सुविधा शुल्क देने वालों के लिए उनके यहां कोई लिमिट नही है।






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