
उरई। आने वाले समय में भतार जैसे शब्द के लिए शायद किशोरों और युवाओं को हिंदी की डिक्शनरी तलाशनी पड़ जाये। चाहे विवाह हो या अन्य मांगलिक कार्य जब तक सहकार की संस्कृति थी भतार का उत्साह ही अलग होता था। भतार यानि रसोईघर जिसमें गांव के लोग खाना बनाने के लिए गाते हुए स्वयं सेवा करते थे। भतार का यह विलुप्त दृश्य इन दिनों संघ कार्यालय में साकार हो रहा है।
स्वयं सेवक लाॅकडाउन से पीड़ित लोगों के लिए भोजना सामग्री के पैकेट तैयार करने में भतार कर्म की तरह लगे हैं। एक पैकेट में 3 किलो आटा, 1 किलो दाल, 2 किलो चावल, आधा लीटर तेल, डेढ़ किलो आलू और गरम मसाला रखा जाता है।
इसमें खुद जिला प्रचारक दीपक जी और नगर प्रचारक राममोहन जी बढ़ चढ़कर हाथ बंटा रहे हैं। इसके अलावा अनूप मिश्रा, विनियन दुबे, अर्पण शुक्ला, सुमित प्रताप सिंह, जितेन्द्र विक्रम, लवकुश, प्रखर त्रिपाठी, निर्मल तिवारी, छोटू तिवारी, वलबीर सोनी, जितेन्द्र राजपूत, अक्कू दीक्षित, आकाश जादौन आदि स्वयं सेवक भी पूरी लगन से जुटे हुए हैं।
एक दिन में 400 पैकेट बनाए जा रहे हैं। इस दौरान सोशल डिस्टेटिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।






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